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शारीरस्थान-अ० ४.
(७१५) (मासिक का शुद्धरज) से मिलजाताहै। वह चेतनाधातु सस्वसंज्ञक मनरूप कर• णसे युक्त होकर गुण ग्रहण करने में प्रथम प्रवृत्त होता है । इसीलिये यह कारण, निमित्त, अक्षर, कर्ता, मंता, वेदिता, बोद्धा, द्रष्टा, धाता, ब्रह्मा, विश्वकर्मा, विश्वरूप, प्रभव, अव्यय, नित्य,गुणी, ग्रहणकता. प्रधान, अव्यक्त, जीव, ज्ञाता, . अकुल, चेतनावान, विशु, भूतात्मा इन्द्रियात्मा और अन्तरात्मा कहाजाताहै ॥४॥
सगुणोपादानकालेऽन्तरिक्षपूर्वतरमन्येभ्योगुणेभ्यउपादत्तेयथा प्रलयात्वयसिसृक्षुभूतान्यक्षरभूतःसत्त्वोपादानंपूर्वतरमाकाशे . सृजति । ततःक्रमेणव्यक्ततरगुणान्धातून् वाम्बादश्चितुरः । तथादेहग्रहणेऽपिप्रवर्त्तमानःपूर्वतरमाकाशमेवोपादत्तेततःकले. णव्यक्ततरगुणान्धातून्वाय्यादींश्चतुरः। सर्वमपितुखल्वेतद्गुगोपादानमणुनाकालेनभवति ॥ ५॥ वह चेतनाधातु गुण ग्रहण करनेके समय और अन्य गुण ग्रहण करनेसे प्रथम आकाशको ग्रहण करके रहताहै । जैसे-विधाता प्रलयके अनन्तर सृष्टि रचना कर.. नेकी इच्छासे सत्त्वोत्पादन करनेसे प्रथम आकाशको रचताहै फिर उस आकाशमें क्रमपूर्वक वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी इन व्यक्तगुणोंवाली धातुओंको रचताहै । उसीप्रकार देहको ग्रहण करने में प्रवृत्त होनेकी इच्छावाला आत्मापहिले आकाशको ग्रहण करताहै फिर क्रमसे वायु,आदि चार व्यक्तधातुओंके गुणोंको ग्रहण करताहै। यह संपूर्णही गुणोंका उपादान अर्थात् ग्रहण करना अणुकाल द्वारा होताहै ॥५॥
गर्भकी पहिली अवस्था । ससर्गगुणवान्गर्भत्वमापन्नःप्रथमेमासिसंमूर्छितःसर्वधातुकलुषीकृतःखेटभूतोभवतिअव्यक्तविग्रहःसचसदसद्भूतांगाव
यवः॥६॥ . वह चेतनाधातु 'इसप्रकार गुणोंको ग्रहण कर गर्भवको प्राप्त होजाताहै।
है। जो जन्म महनिमें संमूच्छित हुआ संपूर्ण धानुओंसे कलुषित होकर कफके समान, होताहै । इस अवस्थामें इसका शरीर दिखाई नहीं देता । वह प्रथम म
मन्द्रयहानि आदि लभूत गाढासा क्लेद अंगावयवकी सूक्ष्म सत्तासे युक्त होताहै ॥ ६॥
" १ "से अनित्य होतेहैं। द्वितीयेमासिघनःसम्पद्यतेपिण्डंपेक्ष्यर्बुदेवातत्रधनः लक्षण दिखाई देते पेशीअर्बुदनपुंसकम् ॥७॥
। होतेहैं ॥ १६ ॥