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चरकसंहिता - मा० टी० ।
आत्मासे हुए भाव | यानितुखलुअस्य गर्भस्यात्मजानियानिचअस्यात्मतः सम्भवतः सम्भवन्तितानिअनव्याख्यास्यामः । तद्यथा - तासुतासुयोनिषु उत्पत्तिरायुरात्मज्ञानंमनइन्द्रियाणिप्राणापानौप्रेरणंधार
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णमाकृतिस्वरवर्णविशेषाःसुखदुःखेइच्छा द्वेषाचेतनाधृतिबुद्धि-स्मृतिरहंकारः यत्नश्चेत्यात्मजानि ॥ १४ ॥
गर्भमें जो जो भाव आत्मासे उत्पन्न होते हैं उनउन आत्मजभावों को वर्णन कर• ते हैं। यह आत्मा जिस जिस समय जिस जिस योनिमें जन्म धारण करता है उस समय उसी योनिमें इसका जन्म, आयु, आत्मज्ञान, मन, संपूर्ण इन्द्रियें, प्राण, अपान, प्रेरणा शक्ति, धारणा, आकृति, स्वर, वर्ण, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, चेतना, धृति, बुद्धि, स्मृति, अहंकार, प्रयत्न, यह सब उत्पन्न होते हैं । यह सव आत्मा केही लक्षणह इसलिये गर्भ आत्मज होता है ॥ १४ ॥
सात्म्यजश्चायं गर्भः नहिअ सात्म्य सेवित्वमन्तरेण स्त्रीपुरुषयोर्वन्ध्यत्वमस्तिगर्भेषुवाअनिष्टोभावः । यावत्खलुअसात्म्यसेविनांस्त्रीपुरुषाणां त्रयोदोषाः प्रकुपिताः शरीरमुपसर्पन्तोन शुक्रशोणितगर्भाशयेोपघातायोपपद्यन्ते तावत्समर्थगर्भजननायभवन्ति । सात्म्यसेविनां पुनःस्त्रीपुरुषाणामनुपहत शुक्रशोणितगर्भाशयाना मृतुकाले सन्निपातितानां जीवस्थान वक्रमणाद्गर्भान प्रादुर्भवन्ति । नहिकेवलंसात्म्यजएवायंगर्भः समुदायोऽत्रकारणमुच्यते ॥ १५ ॥
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यह गर्भ सात्म्यज भी है।यदि स्त्री पुरुष असात्म्य पदार्थों को सेवन न करें तो उनमें वन्ध्यादोष तथा गर्भ में अनिष्टभाव कभी उत्पन्न न होवे। जबतक कसात्म्यसेचनसे दोष कुंपित होकर स्त्रीपुरुषों के शरीर में उपसर्पण करतेहुए और शुकशोणितसे मिल कर गर्भाशय में उपघात नहीं करते तभतिक गर्भाधान होसकता है तथा अतारम्यसेवन से दोष कुपित होजानेपर गर्भाधान नहीं होने देते । सात्म्यसेवन करनेवाले. स्त्री पुरुषों का रज और वीर्य शुद्ध होता हुआ ऋतुकालमै मिलापद्वारा गर्भाशयः प्रवेश करनेपर भी यदि जीवात्मा अणु प्रवेश न करे तो गर्भ नहीं रहता । केवल