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चरकसंहिता-भा० टी०।
सत्वका उत्पादकत्व । अस्तिखल्वापसत्त्वमौपपादिकं यजीवस्यकशरीरेणाभिसम्ब- " नाति-। परिसन्नपगलनपुरस्कृतेशीलमस्यव्यावर्त्ततेभक्तिर्विए-. ! संस्थत लर्वेन्द्रियाण्युपत्तप्यन्तेबलहीयतेव्याधय आप्यायन्ते।। यस्माद्धीनःप्राणाञ्जहातियदिन्द्रियाणामभिग्राहकञ्चमनइत्य : भिधीयततत्रिविधमाख्यायतेशुद्धराजरंतामलञ्चइति ॥ १९ ॥ सत्व भी गर्भके सम्बन्धको उत्पन्न करनेवाला होताहै । यही सूक्ष्मभावोंसहित आत्माका स्थूल शरीरके साथ सम्वन्ध कराताहै । जब यह सत्त्व शरीरसे अलग होनेलगताहै ता इसके अलग होनेसे प्रथमही शरीरका स्वभाव भी बदलजाताहै । इच्छा विपरीत होजातीहै, इन्द्रिये लेशित होजाती हैं, शरीरमेंसे वल क्षय होजाताहै रोग बढने लगतेहैं । जब यह सत्त्वसंज्ञक मन शरीरको त्यागताहै उसी समय प्राणोंका परित्याग होजाताहै । यह सत्त्वही इन्द्रियोंका अभिग्राहक मन कहाजाताहै । यह सत्त्व, रज, और तमके भेदसे तीनप्रकारका होताहै ॥ १९ ॥
येनास्यखलुप्रयतोभूयिष्ठंतेनद्वितीयायामाजातौसम्प्रयोगोभवतिायदातुतेनैवशुद्धनसंयुज्यतेतदाजातेरतिकान्तायाश्चस्मरति। स्मातहिज्ञानमात्मनस्तस्यैवमनसोऽनुबन्धादनुवर्तते यस्यानुवृत्तिंपुरस्कृत्यपुरुषोजातिरित्युच्यतेइतिसत्त्वमुक्तम् ॥२०॥ मनमें सतोगुण,रजोगुण,और तमोगुण इन तीनों गुणोंमेंसे जो गुण अधिक होता है उसका दूसरे जन्मतक संयोग रहताहै । यदि सतोगुणके साथ संयोग होताहै तो इसको पूर्वजन्मका भी स्मरण आताहै । स्मार्तज्ञानयुक्त मनके साथ जब आत्माका संयोग होताहै तब आत्माको अपने जन्मांतरका भी स्मरण आने लगताहै । उस पुरुषको जातिस्मर कहते हैं यह गुण सतोगुण प्रधान मनोंके संयोगसे होताहै२०॥
थानिखल्वस्यगर्भस्यसत्त्वजानियानिचअस्यसत्त्वतःसम्भवतः सम्भवतितानिअनुव्याख्यास्यामः। तद्यथा-अक्तिःशीलंशोचंद्वेष:स्कृतिोहस्त्यागोमात्सर्यशौर्यलयंत्रोधस्तन्द्राउल्लाहस्तक्ष्ण्यंमार्दवंगाम्भीर्य्यमनवस्थितत्वमित्येवमादयश्चान्यते सत्त्वजाविकारायानुत्तरकालंसत्त्वभेदमधिकृत्यउपदेक्ष्यामइति सत्त्वजानि । नानाविधानितखलुसत्वानितानिसर्वाणिएक