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शारीरस्थान-अ०.३. पुरुषभवन्तिनचभवन्तिएककालम्, एकन्तुप्रायोऽनुवृत्त्याह । एवमलानाविधानालेषांगर्सकराणांमावानांसमुदायादाभिनिवर्ततेगर्सः ॥ २१॥
गर्भके वीचमें सत्यसे उत्पन्न होनेवाले जो भाव होतेहैं उनको वर्णन करतेहैं।भक्ति, सुशीलता, शौच, वेष, स्मृति, मोह, त्याग, मात्सर्य, शूरता, भय, क्रोध, तंद्रा, उत्साह, क्षीणता, मृदुता, गंभीरता, चंचलता तथा अन्य भी. इसीप्रकारके गुण सात्त्विक, राजस और तामस मनके भेदसे अनेक प्रकारके उत्तहं होत. । इनसवको आगे वर्णन करेंगे। सबसे उत्पन्न होनेवाले अनेक प्रकारके गुण होतेहैं। वह सब गुण एकही मनुष्यमें पायेजातेहैं परन्तु एककालमें सतोगुण तमोगुण
और रजोगुण एकही पुरुषमें नहीं होसकते । यद्यपि सब मनुष्योंमें प्रायः तीनगुणज्ञा संयोग होताही है परन्तु जिसमें जिसगुणकी अधिकता होती है उसको उसी गुणसे प्रधान मानाजाताहै । (सतोगुणके केवल प्रकाश होनेसे रजोगुण और तमोगुण नष्ट होकर मोक्ष होजाताहै । ) इसप्रकार गर्भकर्ता भावोंके समुदायसेही गर्भकी उत्पत्ति होतीहै ॥ २१ ॥
यथाकूटागारंजानाद्रव्यसमुदायाद्यथावारथोनानारथाङ्गसमुदायात्तस्मादेतदवोचाममातृजश्चायंगर्भ:पितृजश्चात्मजश्चसाल्यजश्चरसजश्च । अस्तिसत्त्वमापपादिकमितिहोवाचभगवानात्रेयः ॥ २२॥ जैसे-कूयगार (घर विशेष) अनेक द्रव्योंके होनेसे बनाया जाताहै और रथ अनेक अंगोंके समुदायसे बनताहै उसीप्रकार गर्भभी गर्भोत्पादक संपूर्णभावोंके संबंधसेही उत्पन्न होताहै इसलिये कहते हैं कि गर्भ मातृज, पितृज, आत्मज, साल्स्यज तथा रसज होताहै। एवम् सत्त्वसंज्ञक मन उसके संबंधको उत्पन्न करनेबाला होताहै इसप्रकार भगवान आत्रेयजीने कथन कियाहै ॥ २२ ॥
भरद्वाजका प्रस्ताव । भरद्वाजउवाच । यद्ययमेषांनानाविधानांगर्भकराणांभांवानां समुदायादसिनिर्वर्त्ततेगर्म कथमयंसन्धीयते । यदिचापित न्धीयतेकस्मात्समुदायप्रभवःसन्गोमनुष्यविग्रहणजायतेमा नुष्यश्चमनुष्यप्रभवउच्यते । तत्रचेदिष्टमेतद्यस्मोन्मुनुष्योमा