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चरकसहिता-मा० टी० द्यन्तेतदामनुष्यविग्रहेणजायन्ते । तस्मात्समुदायात्मकःसन्याभोमनुष्यविग्रहेणजायतेमनुष्योमनुष्यप्रभवइत्युच्यतेतयोनिद. त्वात् ॥ २५॥
सम्पूर्ण प्राणीमात्रकी जरायुज, अण्डज, स्वेदज और औद्भिद यह चार प्रका. रकी योनि है इन चार प्रकारकी योनियोंके अनेक और असंख्य भेद होतेहैं।क्योंकि प्राणियोंके आकार विशेषभी असंख्य होते हैं। उन चारोंमें जरायुज और अंडज प्राणियोंके यह गर्भकारक भाव जिस जिस योनिमें प्राप्त होतेहैं उसीउसी योनिके अनुरूप अपने अपने गठनको प्राप्त होतेहुए उनके अनुसार बनावटके होजातेहै । जैसे-एक मनुष्यके अनुरूप सांचमें सोना, चांदी, तांबा, रांगा, सीशा अथवा मोम गलाकर ढालदेनेसे मनुष्यके आकारको प्रतिमाको प्राप्त होजातेहैं । उसीमकार गर्भकारक संपूर्ण भावोंका समुदाय-मनुष्य आकारके रचनेवाली योनिमें पडजानेसे मनुष्यसे मनुष्य उत्पन्न होताहै क्योंकि वह मनुष्ययोनि होनेसे मनुष्यही. होसकताहै ॥ २६ ॥
यचोक्तंयदिचमनुष्योमनुष्यप्रभवः कस्यान्नजडादिभ्योजाताः पितृसशरूपाभवन्तीतितत्रउच्यते यस्ययस्यहिअगावयव. स्यबीजेबीजभावउपतप्तोभवतितस्यतस्याजावयवस्यविकृतिरुपजायतेनउपजायतेचअनुतापात्तस्मादुमयोपपत्तिरपिअवस--
वस्यचात्मजानिइन्द्रियाणितेषांसावाभावहेतुर्दैवंतस्मान्नैकान्त... तोजडादिभ्योजाताःपितृसशरूपाभवन्ति ॥ २६ ॥
और यह जो आपने कहा है कि जब मनुष्यसे मनुष्य प्रगट होताहै तो ज़डादिकांकी संतान उनके समान जड, अंधी,कुबडी, आदि क्यों नहीं होती तो उसका यह स्पष्ट उत्तर है कि बीजके संपूर्ण अंगों में बीजकी शक्ति है उस बीजके जो अंश,. अवयव खराब होजातेहैं संतानके भी उन्हीं अंश या अवयवोंमें विकार उत्पन्न होजातेहैं यदि बीजमें किसीप्रकारका · कोई विकार नहीं है तो उससे उत्पन्न होनेवाली संतानमें भी कोई विकार नहीं होते। क्योंकि जड आदिकोंक वीर्यमें विकार न होनेसे उस वीर्यसे उत्पन्न होनेवाली संतानमें भी कोई विकार उत्पन्न नहीं होते। उस वीर्यमेंही प्रमेहादि दोष होनेसे संतानकोभी प्रमेहादि दोष होतेहैं । इससे आपके कहेहुए दोनों प्रश्नोंका उत्तर दिया जाचुका।सबकी सब इंद्रिय आत्मज होतीहैं और उनके साथ पूर्वजन्मके कर्मका संबंध होताहै । वह पूर्वजन्मक. .