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शारीरस्थान-अ० ३.
(७०५३ सात्स्यसेवनसेही गर्भ उत्पन्न होताहै यह बात नहीं है। किंतु गर्भके उत्पन्न करने बाले सम्पूर्ण भावों में सात्म्यसेवन भी एक कारण मानाजासाहै ॥ १५ ॥
सात्म्यसे हुए गर्भके अवयव । यानितुखल्वस्यगर्भस्यसात्स्यजानियानिचअस्यसात्म्यतःलम्भवतःसम्भवन्तितानिअनुव्याख्यास्यामः। तद्यथा-आरोग्यमनालस्यमलोलुपत्वमिन्द्रियप्रसादःस्वरवर्णबीजसम्पत्प्रहर्षभूयस्त्वञ्चतिसात्स्यजानि ॥ १६ ॥ सात्म्यसेवनसे गर्भमें जो भाव पैदा होतेहैं उनका वर्णन करतेहैं।जैसे आरोग्यता, अनालस्य, निर्लोभता, इन्द्रियोंका प्रसाद, स्वर, वर्ण और वीर्यका उत्तम होना, चित्त प्रसन्न रहना यह सब सात्म्यसेवनके फल हैं । इसलिये गर्भकी उत्पत्ति, सात्म्यको भी कारण मानाजाताहै ॥ १६ ॥
गर्भकी रसन उत्पत्रि । रसजश्चायंम नहिरसादृतेमातुः प्राणयात्रापिस्याकिंपुनर्ग- .. भजन्म,नचैवास्यसम्यगुपयुज्यमानारसागर्भमभिनिवर्तयन्ति नचकेवलंसम्यगुपयोगादेवरसानांगर्भाभिनिवृचिर्भवविसमुदायोऽप्यत्रकारणमुच्यते ॥ १७ ॥ यह गर्भ रसज भी है। याद रसोंको सेवन न कियाजाय तो माताकें प्राण भी नहीं रहसकते मोर गर्भके उत्पन्न होनेको तो कहनाही क्या है । रसही उत्तमरूपसे सेवन किये जानपर गर्भको उत्पन्न करतेहैं यद्यपि केवल रसोंकाही उत्तमरीतिसे प्रयोग कियानाना गर्भको उत्पन्न नहीं कर सकता परन्तु गर्भके उत्पन्न करनेवाले कारणोंमें रस भी एक कारण होताहे ॥ १७॥
गर्भके रसज अवयव । यानितुखल्वस्यगर्भस्यरसजानियानिचास्यरसतःसम्भवतः सम्भवन्तितान्यनुव्याख्यास्यामः । तद्यथा-शरीरस्याभिनिर्वृत्तिरभिवृद्धिःप्राणानुबन्धस्तृप्तिःपुष्टिरुत्साहश्चेतिरसजानि१८ इस गर्भके नो नो भाव रससे उत्पन्न होते हैं उनका वर्णन करते हैं। जैसे शरीरका उत्पन्न होना और बढना, प्राणोंका अनुबन्ध तृप्तिः और पुष्टि तथा उत्साह यह सब रससेही होते हैं। इसलिये गर्भके प्रगट होनमें रसको भी कारण मानाजा ताहै ॥१८॥
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