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शारीरस्थान-अ०३.
(७०१ ) नियानिचास्य. मातृतःसम्भवतःसम्भवन्तितानि अनुव्या-.. ख्यास्यामः । तद्यथा-त्वकचलोहितश्चमांसश्चमेदश्चनाभिश्च हृदयञ्च क्लोम च यकच्च प्लीहा च बुक्कौ च बस्तिश्च पुरीषाधानञ्चामाशयश्च पक्वाशयश्चोत्तरगुदञ्चाधरगुदश्चक्षुद्रान्त्रञ्च
स्थूलान्त्रञ्च वपा च वयावहनश्चेतिमातृजानि ॥८॥ - तब भगवान् आत्रेयजीने कहा कि ऐसा नहीं होता । गर्भ इन संपूर्ण भावाक होनेसे ही प्रगट होता है। यह गर्भ मातासे भी उत्पन्न होताहै क्योंके माताके विनाः गर्भ उत्पन्न होही नहीं सकता और जितने जरायुज प्राणी हैं वह विना माताके जन्म लेही नहीं सकते और इस गर्भ में मातासे जो २ अवयव उत्पन्न होते हैं उनको वर्णन करते हैं । जैसे-त्वचा, रक्त, मांस, मेद, नाभि, हृदय, क्लोम, प्लीहा, यकृत,दोनों बुक्क, वस्ती, आमाशय, मलाशय, पक्वाशय, उत्तरगुद, अधःशुद, क्षुद्रअन्तर्डिये, वसा, वसाके वहनस्थान, यह सब मातासे उत्पन्न होतेहैं तथा इनको मातृज अवयक कहते हैं । इसलिये गर्भको मावज कहना चाहिये ॥ ८॥
पितासे होनेवाले अवयव । पितृजश्चायंग नहिपितुतेग त्पत्तिःस्यान्नचजन्मजरायुजानाम् । यानिखलुअस्यगर्भस्यपितृजानियानिचास्यपिततः सम्भवतःसम्भवन्तितानिअनुव्याख्यास्यामः । तद्यथा--केशश्मश्रनखलोमदन्तास्थिशिरास्नायुधमन्य शुक्रमितिपितृजानि ९॥ गर्भ पितृजभी है। क्योंकि पिताके विना गर्भकी उत्पत्तिही नहीं होती। दिनाः पिताके जरायुजोंका जन्मही नहीं होसकता । अव गर्भके जो २ अंग गर्भमें पितासे उत्पन्न होते हैं उनका कथन करते हैं । जैसे केश, श्मश्रु, नख,रोम दांत, अस्थियां, शिरा और स्नायु तथा धमानियें एवम् शुक्र पितासे उत्पन्न होते हैं । इसलिये; गर्भको पितृज भी कहना चाहिये ॥ ९॥ .
मात्मासे उत्पन्न हुए गर्भावयव । आत्मज़श्चायंगमोंगआत्मान्तरात्मायस्तमेनंजीवइत्याचक्ष- . तेशाश्वतमरुजमजरममरमक्षयमभेचमच्छेद्यामलाविश्वरूपं विश्वकर्माणमव्यक्तमनादिमनिधनमक्षरमपि । सगर्भाशय- .