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शारीरस्थान-०३. '
(६९९). जिस आत्माका जन्म नहीं हुआ वह आत्माको प्रगट करताहै। यदि कहो कि आत्मा स्वयं अपने आपको प्रगट करताहै तो जो आत्मा एकबार जन्म लेंचुकाहै वह फिर किसमकार अपनेको प्रगट:कर सकताहै अर्थात् नहीं प्रगट कर सकता और अजात
आत्मा भी आत्माको प्रगट नहीं करसकता क्योंकि वह अजात है।मजात होनेसे वह अपनेको जन्म देही नहीं सकता । याद उसमें स्वयं यह शक्ति होती तो अपनी इच्छानुसार श्रेष्ठ २ शरीरोंमें प्रवेश करता । इसलिये दोनों प्रकार होना अयुक्त है. अर्थात् नहीं होसकता । याद ऐसा होता तो सत्तावान् आत्मा वशी, अप्रतिहतगति, कामरूपी, तेजसम्पन्न और बल, वेग, वर्ण तथा सत्व एवं दृढतासम्पन्न होनेसे तथा अजर,अमर, रोगरहित एवं इससेभी अधिक र उत्तम २ गुणोंकी इच्छा करताहुअर आत्माको कहीं बहुतही उत्तम शरीरों में प्रगट करता ॥४॥
गर्भकी असात्म्यनवा। असात्म्यजश्चासंग यदिहिसात्म्यजःस्यातहिंसात्म्यसेविना. मेवैकान्तेनव्यक्तंप्रजास्यात् । असात्म्यसेविनश्चनिखिलेनानपत्याःस्युस्तच्चोभयमुभयत्रैवदृश्यते॥५॥ सात्म्यसे भी गर्भकी उत्पत्ति नहीं होती यदि सात्म्य पदार्थोंके सेवनसेही गर्भ उत्पन्न होता तो जो मनुष्य सात्म्य पदार्थोंका सेवन करते हैं केवल उन्होंके संतान हुआ करती और असात्म्य, पदार्थोंके सेवन करनेवाले संपूर्ण मनुष्योंके वंशही न चलते अति उनकी संतानही न हुआ करती । परंतु देखने में ऐसा आता है. कि सात्म्य पदाथोंके सेवन करनेवालोंमें भी संतान बहुतोंको नहीं होती और असात्म्य सेवन करनेवालोंको संतान होती है । इसलिये सात्म्यसेवनसे नभ उत्पन्न होताहै यह. कहना वृथा है ॥ ५॥ ..
. . . गर्भका रससे उत्पन्न न होना। 'अरसजश्चायंग यदिहिरसजः स्यान्नकेचित्स्त्रीपुरुषेषुअनपत्याः स्युनहिकाचदस्त्येषांयोरसान्नोपयुङ्क्ते। श्रेष्ठरसोपयोगिनांचेदर्भाजायन्तेइत्यतोऽभिप्रेतमित्येवं सति, आजारेभ्रमार्गमायूरगोक्षीर-दधि-घृत-मधु-तैल-सैन्धवेक्षुरसमुद्गशालिभूतानामेवएकान्तनप्रजास्यात् । श्यामाकवरकोदालककौरदूषककन्दमूलभक्ष्याश्चनिखिलेनानपत्याः स्युः तच्चोभयमुभयोवदृश्यते ॥६॥