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चरकसंहिता-भा० टी०। आत्मायुक्त भूतसमुदाय अपने किये कर्म के आधान बीजस्वरूप होतेहुए वारम्वार अच्छे और बुरे शरीरोंको धारण करतेह ॥ ३२॥ ३३ ॥
रूपाद्विरूपप्रभवःप्रसिद्धःकात्मकानांमनसोमनस्तः । भवन्तियेत्वाकृतिबुद्धिभेदारजस्तमस्तत्रचकर्महेतुः ॥३४॥ अतीन्द्रियस्तैरतिसूक्ष्मरूपैरास्माकदाचिन्नवियुक्तरूपः । नकर्मणानैवमनोमतियांनचाप्यहंकारविकारदोषैः॥ ३५॥ रजस्तमो यान्तुमनोऽनुबद्धज्ञानविनातत्रहिसर्वदोषाः। गति-. प्रवृत्त्योस्तुनिमित्तमुक्तंमनःसदोषबलवच्चकर्म ॥ ३६॥ जैसे बीज अपने समानही अंकुरको उत्पन्न करनेवाला होताहै। उसीप्रकार गर्भका . स्वरूप भी उसके बीजके समान होताहै । पूर्वजन्मके कियेहुए कर्मके आधीन मनसेही गर्मका मन उत्पन्न होताहै । आकृतिका भेद आर बुद्धिकी विशेषता तया कर्मादि: कोंकी विशेषतामें भी रजोगुण और तमोगुण कारण होते हैं उन अतीन्द्रिय तथा अत्यंत सूक्ष्मभूत समूहसे आत्मा कभी पृथक् नहीं होसकता और वह भूतगण कर्म, मन, बुद्धि और महंकारसे अलग नहीं होसकते । मनका रजोगुण और तमोगु. णसे नित्यसंबंध है इसीलिये ज्ञानके विना अन्य इसमें संपूर्ण दोपही दोप होतेहैं । दोषयुक्त मन और बलवान् कर्म मनुष्यकी गति और प्रवृत्तिके निमित्त
रोगाःकुतःसंशमनंकिमषांहर्षस्यशोकस्यचकिनिमित्तम् । शरीर. सवप्रभवाविकाराःकथनशान्ताःपुनरापतेयुः ॥३७॥
(प्रश्न) रोग किसप्रकार कहांसे उत्पन्न होतेहैं । उनका शान्तकर्ता उपायः क्या है आनन्द और शोक होनेका कारण क्या है । शारीरिक तथा मानसिक संपूर्ण विकार कैसे शान्त होकर फिर उत्पन्न नहीं होते ॥ ३७॥ . . प्रज्ञापराधोविषमास्तदर्था हेतुस्तृतीयःपरिणामकालः। सर्वां
मयानांत्रिविधाचशान्तिर्ज्ञानार्थकालाःसमयोगयुक्ताः ॥ ३८॥ धाःक्रियाहर्षनिमित्तमुक्तास्ततोऽन्यथाशोकवनियन्ति ।
शरीरसत्त्वप्रभवास्तुदोषास्तयोरवृत्त्यानभवन्तिभूयः॥ ३९ ॥ । रूपस्यसत्त्वस्यचसन्ततियानोक्तस्तदादिनहिसोऽस्तिकश्चित्। . ... . तयोरवृत्तिःक्रियतेपराभ्याधुतिस्मृतिभ्यांपरयाधियाच ॥ ४० ॥
दोषयुक्त मन ॥ ३५ ॥ ३६ ॥
स्यशोकस्यचा