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शारीरस्थान-अ० २.
आत्माके देहभर में प्राप्त होनेका कारण । भूतश्चतुर्भिःसहितःसुसूक्ष्मेमनोजवोदेहमुपतिदेहात् । कर्मा त्मकत्वान्नतुतस्यदृश्यंदिव्यंविनादर्शनमस्तिरूपम् ॥ २९ ॥ ससर्वगःसर्वशरीरभृञ्चसविश्वकम्मसिचविश्वरूपः । सवेत । नाधातुरतीन्द्रियश्वसनित्ययुक्तानुशयःसएव ॥ ३०॥ प्रथम देह त्याग देनेके अनन्तर सूक्ष्मरूपसे चारों भूतोंके साथ संयुक्त हुआ आत्मा अपने कियेहुए कर्मों के आधीन होकर मनके वेगके समान शीघ्र गर्भ में प्राप्त होजाताहै । जिस समय सूक्ष्म अशोसहित आत्मा गर्भमें आकर प्रवेश करताहै उसको प्राणी दिव्यदृष्टिके विना नहीं देख सकताहै । वह आत्माही सर्वगामी,सर्वशरीरभृत्, विश्वकर्मा एवं विश्वरूप है । पही आत्मा शरीरमें चेतनारूप धातु है,. अतीन्द्रिय है, शरीरसे नित्य संबंध रखनेवाला है। (मोक्ष होनेपर शरीरसे सम्बन्ध छोडदेताहै ) सुखदुःखको जाननेवाला है॥ २९ ॥ ३० ॥
रसात्मलातापितलम्सनानिमतानिविद्यादशषट्चदेहे । चत्वा· रितमात्सालिसंश्रितानस्थितस्तथालाचचतुतेषु ॥३१॥ .
रस, आत्मा, मातापितासे प्राप्त चारभूत, दश इन्द्रिय तथा छ। धातुएँ यह सब तत्व देहमें स्थित रहतेहैं ।इनमें सूक्ष्म चतुर्भूत आत्माके आश्रित है और आत्मा उन चतुर्भूतोंके आश्रित है।इस प्रकार इनका परस्पर मोक्षपर्यन्त नित्य संबंध रहताहै ३१॥
सूतानिमातापितृसत्सवानिरजश्वशकञ्चवदन्तिगर्थे ।आप्याप्यतेशुंक्रमलचसूतैयस्तानिभूतानिरसोद्भवानि ॥ ३२ ॥ भूतानिचत्वारितुकर्मजानियान्याललीलानिविशन्तिगर्भस् । सहजधर्माह्यपरापराणिदेहान्तराण्यात्मनिथानियानि ॥३॥ गर्भमें माताकारज और पिवाका वीर्य.जो है इन्ही दोनोंको मातापितासे उत्पन्न हुए चतुर्भूत कहतेहै । यह सबभूत उस रक्त शुक्रकाही पालन करतेहैं । यद्यपि यह चारों भूत छः रसोंसे मातापिताके शरीरमें उत्पन्न होतेहैं। परन्तु यह चतुर्भूत अपने 'पूर्वजन्मके किये कर्मके आधीनही होकर आत्मसंसृत हुए गर्भ में प्रवेश करते हैं । यह
१ आकाश व्यापक होनेसे. गर्भ में स्वय सम्मिलित होताहे आकाशमें गमनशीलता न होने और "चारभूतोंके समानं शुक्रजनक न होनेसे तथा. शुक्रमें चारभूतक समान न जानेसे यहां आकाशको गैना गया इनमें आकाश मिलने का क्रम चौथे अध्यायके पांचवें सूत्र में वर्णन किया । ..