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चरकसंहिता-भा० टी०। गर्भस्यचत्वारिचतुर्विधानिभूतानिमातापितृसम्भवानि । आहारजन्यात्मकृतानिचैवसर्वस्यसर्वाणिभवन्तिदेहे ॥ २४ ॥ तेषांविशेषाद्वलवन्तियानिभवन्तिमातापितृकर्मजानि । तानि
व्यवस्येत्सहशत्वालिङसत्त्वंयथानकमपिव्यवस्येत् ॥ २५॥ . ..आत्मा और इन चार महाभूतोंसे गर्भ प्रगट होताहै । वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी.यह गर्भके चारों महाभूत मातापिताके चार महाभूतोंसेही उत्पन्न होते हैं फिर वह गर्भशरीर माताके आहारसे पुष्ट होताहै । उस गर्भशरीरके स्वरूप आदि कल्पनामें उसके किये शुभाशुभ कर्मोकोही कारण मानना चाहिये। उपरोक्त चारमहाभूत संपूर्ण देहधारियोंके शरीरमें मातापिताकी सादृश्यता आदिहोने के कारण होते. हैं। उन चार महाभूतोंमें पिताके अंश बलवान् होनेसे पिताके समान,माताके अंश बलवान होनेसे माताके समान अथवा इन चारोंमें भी जो बलवान हो उस गुण: वाली संतान होतीहै ॥ २४ ॥ २५ ॥
कस्मात्प्रजांस्त्रीविकृतांप्रसूतेहीनाधिकाङ्गीविकलेन्द्रियाञ्च । देहात्कथंदेहमुपैतिचान्यमात्मासदाकैरनुबध्यतेच. ॥ २६ ॥ (प्रश्न ) विकृत संतान होनेमें क्या कारण है । हीनांग तथा अधिकांग संतान किस कारणसे प्रगट होतीहै, विकलेन्द्रिय संतान क्यों होतीहै । एक देहसे दूसरी देहमें आत्मा कैसे पहुंच सकतीहै। और आत्मा किन बंधनोंसे बंधीहई दूसरे शरीरमें प्रवेश करती है ।। २६ ॥
गर्भको विकृतिका कारण । बीजात्मकमाशयकालदोषैर्मातुस्तदाहारविहारदोषैः । कुर्वन्तिदोषाविविधानिदृष्टाःसंस्थानवणेन्द्रियकृतानि ॥ २७ ॥ वर्षासुकाष्ठाश्मघनाम्बुवेगास्तरोःसरित्स्रोतसिसंस्थितस्य । यथैवकुर्यविकृतितथैवगर्भस्यकुक्षौनियतस्यदोषाः ॥ २८ ॥ (उत्तर) बीजके विकारसे अथवा अपने किये हुये कमाके दोषले माताके किये आहित आहार विहारके दोषसे कुपितहुए वातादि दोष गर्भके आकार, वर्ण, तथा इन्द्रियोंको बिगाड देतेहैं । फिर वह दोष शरीरके अंग और वर्ण,तथा इन्द्रियोंको न्यून अधिक, कुरूप तथा विकल कर देतेहैं । जैसे-वर्सातमें,काष्ठ, पत्थर,मेघ और जल इकठे होकर नदीके किनारेके वृक्षोंको टेढे कुरूपादि कर देतेहैं उसीप्रकार दोष कुपित होकर कुक्षीमें स्थित हो गर्भको विगाड देतेहैं ॥ २७ ॥ २८ ॥