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चरकसंहिता-भा० टी०।
गर्भसे नपुंसकादि होनेके हेतु । कस्माद्विरेताःपवनेन्द्रियोवासंस्कारवाहीनरनारिषण्डः। वक्रीतयाभिरतिःकथंवासञ्जायतेवातिकपण्डकोवा ॥१५॥ (प्रश्न ) द्विरेता--द्विरेता किसप्रकार होता है । पवनेन्द्रिय कैसे होताहै । और संस्कारवाही किस कारणसे होताहै । नरखंण्ड किस कारणसे होताहै। नारीखण्ट किस कारणसे होताहै । नारीखण्ड कैसे होताहै । वक्री कैसे होताहै।ईर्षक किसम कार होताहै । वाविकखण्ड होनेके क्या कारण हैं ॥ १५ ॥
बीजात्समांशादुपतमवीजात्स्त्रीपुंसलिङ्गीभवतिद्विरेताः।शुकाशयंगर्भगतस्पहत्वाकरोतिवायुःपवनेन्द्रियत्वम् ॥ १६ ॥ शुक्राशयद्वारविघटनेनसंस्कारवाहंहिकरोतिवायुमन्दाल्पबीजावंबलावहाँक्लीबोचहेतुर्विकृतिद्वयस्य ॥१७॥ मातुर्यवा'यप्रतिधेनवक्रीस्याद्वीजदौर्बल्यतयापितुश्च । ईष्याभिभूतावपि
मन्दहर्षावी-रतेरेववदन्तिहेतुम् ॥१८॥ वाय्वग्निदोषावृषगौतुयस्यनाशंगतोवातिकपण्डकःसः। इत्येवमष्टौविरुतिप्रकारे राःकर्मात्मकानामुपलक्षणीयाः॥ १९ ॥ (उत्तर) गर्भाधानके समय रज और वीर्य दोनों समांश अर्थात् वरावर होनेसे गर्भ हो जो संवान होती है उसको द्विरेता नपुंसक कहतेहैं । यह स्त्री और पुरुषकैसे लक्षणवाला होताहै । जब वायु गर्भके शुक्राशयको नष्ट करदेताहै उससे जो बालक प्रगट होताहै उसको पवनेंद्रिय (नपुंसक) कहते हैं इसको वीर्य नहीं होता। यदि वायु गर्भ में शुक्राशयके द्वारको रोकदेवे तो उस गर्भसे उत्पन्नहुए सन्तानको शुक्रवाह कहते हैं । इस पुरुषके शरीरमें वीयाँश होतेहुए भी वीर्य निकल नहीं सकता।माता पिताके अत्यन्त अल्प और दुर्वल वीर्य होनेसे तथा अप्रसन्न होकर भैथुन करनेसेजो गर्भ होताहै उससे यदि पुरुषकेसे लक्षणवाला उत्पन्न हो तो नरषण्ड कहते हैं और . स्त्रकि लक्षणवाला हो तो नारीषण्ड कहते हैं । स्त्री पुरुषके समान ऊपर हो और पुरुषस्त्रीके समान नीचे हो उस अवस्थामें गर्भ रहनसे और पुरुषका वीर्य कम होनेसे जो संतान होती है उसको वक्री कहतेहैं। यदि वह पुरुष हो तो स्त्रीके लक्षणवाला होताहै और स्त्री हो तो पुरुषके लक्षणवाली होतीहै । गर्भाधानके समयमें मातापिताके ईर्षायुक्त तथा मन्दहर्ष होनेसे जो सन्तान होतीहै उसको ईर्षक कहतेहैं। बायु और अग्निके दोषसे जिसके दोनों फोते नष्ट होगयेहों उसको वातिकपण्ड