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चरकसंहिता-भा० टी०॥ योनिप्रदोषान्मनसोऽभितापाच्छुकासृगाहारविहारदोषात् । अकालयोगाइलसंक्षयाचगभचिराद्विन्दातसप्रजापि ॥ ५॥ योनिके दोषसे और मनके अभितापसे शुक्र और रजके दोषसे, अहित आहार विहारके सेवनसे,अकालका योग होनेसे और बलके क्षीण होनेसे इत्यादि कारणों से जो स्त्रिये वंध्या नहीं भी हैं वह भी गर्भको बहुत विलंबसे धारण करती हैं ॥ ५॥
मिथ्याकल्पित गर्भ । असृनिरुदंपवनेननाऱ्यांग व्यवस्यन्त्यबुधाःकदाचित् । गर्भस्यरूपंहिकरोतितस्यास्तदासृगस्राविविवईमानम् ॥ ६॥ तदग्निसूर्याश्रमशोकरोगैरुष्णान्नपानैरथवाप्रवृत्तम् । दृष्ट्वासृगेकेनचगर्भमज्ञा केचिन्नराभूतहृतंवदन्ति ॥ ७॥ जब गुल्म आदिका याग होनेसे वायु स्त्रीके रजोधर्मको रोकदेताहै तव बहुतसे मूर्खलोग यह समझ लेतेहैं कि यह गर्भ है और वह मासिकऋतुके स्राव न होनेसें वृद्धिको प्राप्त हो गर्भकेसे रूपोंको धारण कर लेताहै।जब कभी अचानक अग्नि अथवा सूर्यके संतापसे वा किसी शोक या रोगसे अथवा-गर्मअन्नपानके सेवनसे स्त्राव होने लगताहै तो उस रुधिरको देखकर और शरीरमें पहिलेके समान गर्भकेसे चिह्न न पाकर कोई २ कहनेलगतीहै कि इस गर्भको भूतोंने नष्ट करडाला है ॥६॥७॥
ओजोऽशनानांरजनीचराणामाहारहेतार्नशरीरभिष्टम् । गर्भहरेयुदितेनमातुर्लब्धावकाशनहरेयुरोजः ॥८॥ परन्तु यह सब विश्वास उनका मूर्खताका होता है क्योंकि भूत, प्रेत केवल ओज-- कोही अशन करनेवाले हैं शररिको वह नहीं खाते यदि वह वीके शरीरमें प्रवेश होकर गर्भको नष्ट करते तो माताके ओजको पीकर उसको नष्ट क्यों न कर डालतो. इस लिये यह सब उनका विश्वास मूर्खताका जानना ॥८॥
____एक गर्भ में अनेक सन्तान होनेके विषयमें प्रश्न । कन्यांसुवासहितोपृथग्वामुतोमुतेवातन्क्यावहून्दा ।
कस्मात्प्रसूतेसुचिरेणगर्भमेकोभिवृद्धिञ्चयोऽभ्युपैति ॥९॥ (प्रश्न ) गर्भसे कन्या किस प्रकार उत्पन्न होती है। पुत्र कैसे होताहै। दो पुत्र या दो कन्या किस तरह होते हैं । अथवा कन्या और पुत्र मिलकर दो कैसे होतेहैं।' एकही गर्भसे बहुत पुत्र कैले प्रगट होते हैं। प्रशूरा होने में अधिक विलंब किस प्रकार होताहै और एक गर्भसे यदि दो बोलक उत्पन्न हों तो उनमें एक हृष्टपुष्ट और एफके कृश होनेका क्या कारण है ॥ ९॥