________________
(६८४) चरकसंहिता-भा० टी०।
स्मृतिके लक्षण । कर्मणामसमारंभःकतानाञ्चपरिक्षयः। नैष्कर्व्यसनहंकारःसंयोगेभयदर्शनम् ॥ १४५॥ मनोवुद्धिसमाधानमर्थतत्त्वपरीक्षणम् । तत्त्वस्मृतरुपस्थानात्सर्वमेतत्प्रवर्तते ॥ १४६ ॥ कर्मका अनारंभ, किये हुए कर्मोंका क्षय, गृहादिकोंका त्याग, निरहंकार,विषचोंमें भयदर्शन,मन और बुद्धिका समाधान, अर्थतत्त्वकी परीक्षा यह सव आत्मतसकी उत्कर्षतासे उत्पन्न होतेहैं।अर्थात् यह यौगिक स्मृतिके लक्षण हैं१४५॥१४६
स्मृतिःसत्सेवनायैश्चधृत्यन्तैरुपलभ्यते। स्मृत्यास्वभावभावानांस्मरन्दुःखात्प्रमुच्यते ॥ १४७॥
महात्मादिकोंके सेवन आदि नियमोंसे, और संपूर्ण धृतिके गुणोंके उत्कर्षसे -स्मृतिकी उपलब्धि होतीहै । उसी यौगिकस्मृतिद्वारा संपूर्ण भावोंका स्मरण होनेसे मनुष्य दुःखसुखसे छूट मोक्षका अधिकारी होजाताहै ॥ १४७ ॥
वक्ष्यन्तेकारणान्यष्टोस्मृतिरुपजायते । निमित्तरूपग्रहणात्सादृश्यात्सविपर्ययात् ॥१४८ ॥ सत्त्वानुबन्धादभ्यासाज्ज्ञानयोगात्पुनःश्रुतात् । दृष्टश्रुतानुभतानांस्मरणात्स्मृतिरुच्यते ॥१४९॥ जिन आठकारणोंसे स्मृतिकी उत्पत्ति होतीहै उन आठ कारणोंका कथन कर• तेहैं । जैसे-निमित्त,रूपग्रहण,सादृश्य,विपर्यय, सत्त्वानुवंध, अभ्यास,ज्ञानयोग और पुनःश्रवण करना यह स्मृतिके उत्पन्न होने के कारण हैं। देखेहुए, सुनेहुए, अनुभव कियेहुए भूतोंको स्मरण करनेसे इसको स्मृति कहतेहैं ॥ १४८ ॥ १४९ ॥
एतत्तदेकमयनमुक्तैर्मोक्षस्यदर्शितम् । तत्त्वस्मृतिबलयेनगतानपुनरागताः ॥ १५० ॥ अयनंपुनराख्यातमेतद्योगस्ययो. गिभिः। संख्यातधर्मःसांख्यैश्चमुक्तैमोक्षस्यचायनम् ॥१५१॥ योगीजनोंने यही मोक्षसाधनका एकमात्र मार्ग दिखायाहै।जो महात्मा तत्त्वस्मृतिके बलसे मोक्षको प्राप्त हुए हैं वह फिर कभी जन्मको धारण नहीं करते । इसीको -योगियोंने योगका स्थान कथन किया है और विख्यातधर्मा सांख्यवादियोंने इसीको मोक्षका मार्ग कथन कियाहै ॥ १५० ॥ १५१ ॥ . सर्वकारणवदुःखमस्वञ्चानित्यमेवचानचात्माकतकताद्धवत्र