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. निदानस्थान-०२.
___ रक्तपित्तके उपद्रव । उपद्वास्तुखलुदौर्बल्यारोचकाविपाकश्वासकासज्वरांतीसारशोफशोषपाण्डुरोगस्वरभेदाः॥५॥ दुर्बलता, अरुचि, अन्नका न पचना; श्वास, कास, ज्वर, अतिसार, शोथ, शोष, पाण्डु,स्वरभंग यह रक्तपित्तके उपद्रव होते हैं ॥५॥
रक्तपित्त के मार्ग। मार्गौपुनरस्यद्वौऊर्द्धश्चाधश्चतहहुश्लेष्मणिशरीरेश्लेष्मसंसर्गादूर्द्धप्रपद्यमानंकर्णनासिकानेत्रास्यायः प्रच्यवते । बहुवा
तेतुशरीरेवातसंसर्गादधः प्रपयमानमूत्रपुरीषमार्गाभ्यांप्रच्य. वते । बहुवातश्लंष्मणितुशरीरेश्लेष्मवातसंसर्गाद्दावपिमार्गों
प्रपद्यते। तौमागाप्रपद्यमानंसर्वेश्य एवयथोक्तेयःखेल्यःप्रच्य. वतेशरीरस्य ॥६॥
रक्तपित्तके दो मार्ग हैं एक ऊर्ध्वमार्ग दूसरा अधोमार्ग । वह रक्तपित्त-कफ. अधान शरीरमें करके संसर्गसे ऊपरको गमन करताहुआकान, नत्र,नासिका और मुख द्वारा निकलताहै । वातप्रधान शरीरमें वायुके संसर्गसे नीचको गमन करता हुआ मूत्र और मनके द्वारोंसे निकलतोह। जिसके शरीरमें वायु और कफ इन दाना की अधिकता होतीहै उसके शरीरमें वात और कफके संसर्गसे दोनों ( उपरके
और नीचेके) मार्गों द्वारा निकलताहै । जब दोनों मार्गोंसे प्रवृत्त होताहै तो शरीरके संपूण द्वारोंसे अर्थात मुख, नासिका, नेत्र, गुदा, लिंग इन . सब मागाँसे निकः लताहै ॥ ६ ॥ .. ..
__. रक्तपिचका साध्यासाध्यत्व। ... · तत्रयदूर्वभागंतत्साध्यंविरेचनोपक्रमणीयत्वाद्दद्वौषधत्वाच ॥७॥
उनसे ऊपरके मार्गसे प्रवृत्त होनेवाला रक्तपित्त विरेचन द्वारा शान्त होनेसे,एवम् बहुतसी औषधिय ऊर्ध्वगत रक्तपित्त नाशक होनेसे ऊर्ध्वगत रक्तपित्त साध्य हैं॥७॥ ... यदधोभागंतद्याप्यंवमनोपक्रमणीयत्वादल्पौषधत्वाच्च ॥८॥ · · · अधोमार्गगामी-रक्तपित्त-याप्य साध्य होताहै क्योंकि उसकी शांति करनेवाली औषधिये बहुत थोडी हैं और उसमें वमन द्वारा शांति होतीहै ॥ ८॥
यदुभयभागंतदसाध्यवमनविरेचनायोगित्वादनौषधत्वाचं ॥९॥