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चरकसंहिता-भा० टी०। तमुपस्थितमाज्ञायसमेशुचौदेशेषाप्रवणेवाचतुष्किकुमात्रं .चतुरस्रस्थण्डिलंगोमयोदकेनोपलिप्तकुशास्तीर्णसुपरिहितंप- - - रिधिभिश्चतुर्दिशयथोक्तचन्दनोदककुम्भक्षौसहेमहिरण्यरजतमाणिमुक्ताविद्मालंकतंमेध्य-भक्ष्य- गन्धशुक्लपुष्पलाजासषपाक्षतोपशोभितंकृत्वातत्रपालाशीभिरैगुदीभिरौदुम्बरीभिर्माधुकीसिसिसिद्भिरग्निमुपसमाधायप्रामुखःशुचिरध्ययनविधिमनुविधायमधुसपियांत्रिस्त्रिर्जुहुयादग्निम् । आशीःसंप्रयुतमन्त्राह्मणमनिंधन्वन्तरिप्रजापतिमश्विनाविन्द्रमृर्षीश्चसत्रकारानभिमन्त्रयमाणः । पूर्वस्वाहेतिशिष्यंश्चैनमन्वारभेतहुत्याचप्रदक्षिणमनिसनुपरिकामेत् । ततोऽनुपरिकाम्यब्राह्मणान्स्वस्तिवाचयेत् । सिषजश्चामिपूजयेत् ॥७॥ जब इन सम्पूर्ण वस्तुओंको लेफर शिष्य गुरुके पास आये तब गुरु उस आये हुएको देखकर सम और पवित्र भूमिम,पूर्व अथवा उत्तरकी ओर चार हाथकी चौको. नी वेदी बनाये उसको गोबर और जलसे लिपाकर उसके ऊपर विधिवत् कुशाको विछावे और वेदीके चारों ओर चार परिधि बनाये फिर शास्त्रोक्त गीतिसे चंदन जलके कुंभ, रेशमी वस्त्र, सुनहरीवस्तु, हिरण्य, रजत, मणि, मोती, मूंगा,इनसे यथाविधि स्थानको विभूषित करे फिर पवित्र, भक्ष्य पदार्थ,कर्पूर केशर चन्दनादि गंधद्रव्य श्वेतपुष्प, लाजा (धानकी रखील), सरसों, अक्षत आदिको यथाक्रम स्थापन करे तथा पलाश,इंगुदी, गूलर, महुआ इनकी समिधाओंसे अग्निको विधिवत् प्रज्वलित करे फिर पूर्वाभिमुखहोकर शिष्यको शुद्धभावसे अध्ययन विधिके अनुसार विठाकर शहद और घोसे तीनतीन आहुतिये आनिमें हवन करे । फिर वेदोक्त आशीर्वादके मंत्रोंद्वारा ब्रह्मा, अग्नि,धन्वन्तरि, प्रजापति,अश्विनीकुमार,इन्द्र,ऋषियों तथा सूत्रकारोंको आवाहन करताहुआ पहिले आप स्वाहा कहकर आहुति देवे फिर शिष्य भी उसीप्रकार हवन करे । हवन करनेके अनन्तर अग्निकी प्रदक्षिणा करे और ब्राह्मणोंसे स्वस्तिवाचन करावे तया वैद्योंका पूजन करे ॥ ७॥ . अथैनमग्निसकाशेब्राह्मणलकाशेभिषक्सकाशेचानुशिष्यात् । " ब्रह्मचारिणाश्मश्रुधारिणासत्यवादिनाअमांसादेनमेध्यसेविना - १ प्रारुप्लवने इति पाठान्तरम् प्लवनं निम्नमिति संस्कारसन्ने। .