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चरकसंहिता-भा० टी०। गैवोपायविशेषेणव्याख्यात इतिकारणादीनिदश । दशसुभिषगादिषुसंसार्यसन्दर्शितानि, तथैवानुपूाएतद्दशविधंपरीक्ष्यमुक्तञ्च ॥ ९४॥ परीक्ष्य विषय दश प्रकारके होतेहैं । उन दश प्रकारके कारणादिकोंको पहिले कथन कर चुकेहैं । अव उन्हींको विस्तारपूर्वक वैद्य आदिकोंमें दिखातेहैं । वैद्यकशास्त्रमें चिकित्सारूपी कार्यका कारण अथवा कर्ता वैद्य है और औषधी करण है। धातुओंकी विषमता कार्ययोनि कहाती है। धातुओंकी साम्यावस्था कार्य है । आरोग्यताके सुखकी प्राप्ति होना कार्यफल है। आयु अनुबंध है। देश भूमि और रोगीका शरीर है। काल संवत्सर और अवस्थाको कहतेहैं । प्रत्येक कर्मके आरभको प्रवृत्ति कहतेहैं । कार्य करनेकी इच्छासे वैद्यादिकोंका उचित भावसे योग होना उपाय कहाजाताहै । तथा औषधादिकोंका प्रयोग करना भी उपाय कहाजाताहै । विषय पहिले उपाय विशेषसे कथन करचुके इस प्रकार यह करणादिक दश परीक्षणीय विषय वैद्यादिकोंमें संभार करके दिखादिये गये है इसप्रकार आनु: पूर्व्या दशविध परीक्षणीय विषयोंका कथन कियागयाहै ॥ ९४ ॥
वैद्यपरीक्षा। तस्ययोयोपरीक्ष्यविशेषोयथायथाचपरीक्षितव्यःससतथातथा व्याख्यास्यते। कारणभिषागत्युक्तमतस्यपरीक्षाभिषनामसयोभिषज्यतियःसूत्रार्थप्रयोगकुशल यस्यचायुःसर्वथाविदितम् ॥ ९५॥ उन परीक्ष्य विषयोंमें जो २ परीक्षणीय विषय जैसे २ परीक्षा करनी चाहिये उसका वैसा २ वर्णन करतेहैं। उनमें कारण वैद्य कहा गयाहै । सो उस वैद्यकी परक्षिा यह है कि जो भेषज अर्थात् औषध क्रिया करताहै उसको भिषक् अर्थात वैद्य कहतेहैं । वह वैद्य सूत्र, अर्थ और प्रयोगमें कुशल तथा आयुका सम्पूर्णरूपसे ज्ञाता होनाचाहिये ॥ १५॥
यथावत्सर्वधातुसाम्यचिकीर्षन्नात्मानमेवादितःपरीक्षेत । गुणिषुगुणतःकार्याभिनिवत्तिपश्यन्कच्चिदहमस्यकार्यस्यअ. भिनिर्वर्तनेसमर्थोनवति ॥ ९६ ॥ वैद्यको चाहिये कि संपूर्ण धातुओंको साम्यावस्थामें करनेकी इच्छा करताहुआ