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शारीरस्यान-अ.'१.
(६६७) जगत्को बना नहीं सकते और भोक्ता न होनेसे उनका कोई प्रयोजन भी नहीं रहसकता ॥४१॥
पुरुषकी कारणताका दृष्टान्त । मृदण्डचक्रैश्चकृतंकुम्भकाराहतेघटम् । कृतंमृत्तृणकाष्टैश्चगृहकाराद्विनागृहम् ॥ ४२॥योवदेत्सवदेदेहंसम्भूयकरणैःकतम् । विनाक रमज्ञानायुक्त्यागमवहिष्कृतः । कारणपुरुषःसर्वैः प्रमाणैरुपलभ्यते ॥४३॥येभ्यःप्रमेयंसर्वेश्यआगमेश्यःप्रती
यते ॥४४॥ . जैसे मट्टी,दंड, चक्र यह सब उपस्थित होते हुए भी घट कुम्हारके विना उत्पन्नः . नहीं होसकता । इसी प्रकार मट्टी, पत्थर, लकडी आदि सब समान होनेपर भी विना बनानेवालेके घर स्वयं तैय्यार नहीं होसकता । जो मनुष्य यह कहे कि विना कुम्हारके घट उत्पन्न होसकता है और विना वनानेवालेके घर स्वयं बन सकता है। वह अज्ञानी मनुष्य युक्ति और शास्त्रसे विरुद यह भी कह सकता है कि आकाशादि जड पदार्थोंने ही इस देहको रचा है । जिन सर्व प्रकारके शास्त्रीय प्रमाणोंसेः प्रमेयकी उपलब्धि होतीहै,उन सबसे सिद्ध है कि कारण पुरुषही है॥४२॥४३॥४४.
___कर्तव्यपर विचार। . नतेतत्सदृशास्त्वन्यपारम्पर्धेसमुत्थिताः । सारूप्यायेतएवेतिनिर्दिश्यन्तेनरान्नराः॥४५॥भावास्त्वेषांसमुदयोनिरशिः सत्त्वसंज्ञकः । कर्त्ताभोक्तानसपुमानितिकेचिद्व्यवस्थिताः ॥ ॥४६॥तेषामन्यैः कृतस्यान्येभावाभावैर्नराःफलम् । भुञ्जतेसहशाःप्रातरात्मानोपदिश्यते ॥४७॥ कोई कहतेहैं कि इसका कर्ता कोई नहींहै यह परम्परासे ऐसाही चलाआताहै. मनुष्यसे मनुष्य, पशुसे पशु सानुरूप होता चलाआताहै । यह ईश्वरने उत्पन्न नहीं कियाहै । संपूर्णभाव पृथ्वी, आकाश, अप, तेज, वायुके समानहीः शरीरकी साहः श्यताहै । उस ईश्वरके समान सृष्टि दिखाई नहीं देती । इसलिये ईश्वरने इसको नहीं बनाया यह निरीश्वरवादियोंका पक्ष हैं। अनात्मवादी कहतेहैं कि पुरुष न कर्ता है न भोक्ता है, यह स्वयं ऐसाही चलाआताहै । उनके मतमें करनेवाला और होताहै,फल और भोगताहै।देखिये खानेके लिये दूसरा पुरुष बनाता, खाता दूसराहें