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चरकसंहिता-मा० टी०॥ प्रयत्न, चेतना, धृति, बुद्धि,स्मृति और अहंकार यह सब लक्षण जीवित मनुष्यकें. हैं। मृत मनुष्यमें यह लक्षण नहीं होते इसीलिये आत्माके जाननेवाले महर्षि इन सबको आत्माके लक्षण कथन करतेहैं । इन लक्षणोंवाली आत्माके निकलजानेसे शरीर भयानक, चेतनारहित,शून्य वरके समान दिखाई देने लगताहै । मात्माके निकल जानेपर केवल पंचभूतमात्रका पुतला पडा रहता है। इसीलिये इसको पंचत. (मरण) को प्राप्त होगया ऐसा कहतेहैं ।। ६९॥ ७० ॥ ७१ ॥ ७२ ॥ ७३ ।।
आत्माको कर्तृत्व । अचेतनंक्रियावञ्चमनश्चेतयितापरः। युक्तस्यमनसातस्यनिदिश्यतेविभोःक्रियाः ॥ ७४ ॥ चेतनावान्यतश्चात्माततः
कानिरुच्यते । अचेतनत्वाच्चमनःक्रियावदपिनोच्यते ॥ ७५ मन अचेतन है और आत्मा चैतन्य है। वह आत्माही मनको चैतन्य करनेवाला है। आत्माके आश्रयही मनकी संपूर्ण क्रियायें होती हैं। क्योंकि आत्मा चेतनावान है इसलिये मनकी क्रियाओंका वही कर्ता माना जाताहै । मन अचेतन होनेसे क्रिया करता हुआ भी कर्ता नहीं कहा जाता ॥ ७४ ॥ ५ ॥
यथास्वेनात्मनःसर्वमनःसर्वासुयोनिषु।
प्राणैस्तन्त्रयतेप्राणीनह्यन्योऽन्यस्यतन्त्रकः॥७६ ॥ जो जिस प्रकारका कर्म करता है वह अपनी इच्छा न होनेपर भी अपने किये हुए कर्मके आधीन होकर सवप्रकारकी योनियों में प्राप्त होताहै।मनुष्य अपने कर्मोंद्वाराही अपनी आत्माको अनेक प्रकारफी योनियों में लेजाताहै इसको और कोई किसी योनिमें प्राप्त नहीं करतां ७६ ॥
__आत्माको वशित्व। क्शीतत्कुरुतेकर्मयत्कृत्वाफलमश्नुते।
वशीचेतःसमाधत्तेवशासनिरस्यति ॥ ७७ ॥ अपनी इच्छाके अनुसार प्रवृत्त होनेवाला आत्मा शुभाशुभ कर्मको करताहें और उस कर्मके करनेसे शुंभ और अशुभ फलोंको भोगताहै । और अपने आधीनहीं होकर योग,समाधि आदिमें प्रवृत्त हो संपूर्ण जालको छोडकर मोक्षको प्राप्त होजाआई इसीलये उसको वशी कहते हैं । ७७॥ . . .
देहीसर्वगतोह्यात्मास्वेस्वेसंस्पर्शनेन्द्रिये। . . . . . सर्वाःसर्वाश्रयस्थास्तुनामातोवेत्तिवेदनाः ॥ ७८ ।।...