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. शारीरस्थान-अ० १.
(६६५) • पृथ्वीका खर, मलका द्रव, वायुका चल और अग्निका उष्ण लक्षण होता है। इसी प्रकार आकाक्ष प्रतिघात लक्षण है। यह सम्पूर्ण लक्षण स्पर्शनेन्द्रियके गोचर हैं। स्पर्शनेन्द्रियसे ही स्पर्श और स्पर्शाभावका ज्ञान होता है ॥२७॥२६॥
गुणादिवर्णन। गुणाःशरीरेगुणिनांनिर्दिष्टाश्चिमेवच ।
अर्थाशब्दादयोज्ञेयागोचराविषयागुणाः ॥ १९ ॥ जिसमें गुण होते हैं उसको गुणी कहते हैं शरीरमें गुण जो हैं वह गुणीक चत हैं अर्थात् लक्षण हैं । और शब्दादिक इन्द्रियों के विषय हैं.।।२९ ॥
यायदिन्द्रियमाश्रित्यजन्तोर्बुद्धिः प्रवर्तते ।
यातिसातेननिर्देशंमनसाचमनोभवा ॥३०॥ जिस इंद्रियके आश्रयसे जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसको उस इन्द्रियको बुदि कहते हैं । जो मनसे ज्ञान उत्पन्न होता है उसे मनोभवबुद्धि अथवामानसिक ज्ञान कहने ॥३०॥
ज्ञानोंकी अनेकता। भेदात्कायेन्द्रियानांबवयोवैबुद्धयःस्मृताः।आत्मेन्द्रियम. __.. नोऽर्थानामेकैकासन्निकर्षजा ॥ ३१॥ अंगुल्यंगुष्टतलजस्त.
बीवीणानखोद्भवः । दृष्टाःशब्दोयधावुद्धिदृष्टासंयोगजा तथा॥३२॥ कार्यभेदसे और इन्द्रियों के विषयभेदसे अनेक प्रकारकी बुद्धि प्राप्त होती हैं। आत्मा,इंद्रिय, मन और अर्थों के संनिकर्षसे पृथक र बुद्धि उत्पन्न होतीहै । जैसेअंगुली अंगूठा, हवेली, तंत्री, वीणा नख इनके संयोगसे पृथक् २ शन्द उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार जैसे जैसे अर्थसे संयोग होता है वैसे वैसे संयोग भेदस पृथक र बुद्धि उत्पन्न होतीहै ॥ ३१ ॥ ३२ ॥
बुद्धीन्द्रियमनोऽर्थानांविद्याद्योगधरंपरम् ।
चतुर्विशकइत्येषराशिःपुरुषसंज्ञकः ॥३३॥ बुदि, इन्द्रियं, मन और इनके विषयों के योगको धारण करनेवाला चौवीस बालकी राशिवाला पुरुष कहा जाताहै ।.३३ ॥ .
रजस्तमोभ्यायुक्तस्यसंयोगोऽयमनन्तवान् । ताभ्यांनिराकृताभ्यान्तुसत्वबुद्धयानिवर्तते ॥ ३४॥.