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१६६४) चरकसंहिता-भा० टी.। 'पूर्ववाले महाभूतका लेताजाताहै। यद्यपि आकाश,वायु,अनि,जल और पृथ्वी इनके
शब्द, स्पर्श, रूप, रस भौर गंध यह क्रमसे एकएकका एकएक गुण है परन्तु यह 'एकएक गुण क्रमपूर्वक दूसरेका लेते जातेहैं । इन पंचमहाभूतोंकी भवण, स्पर्शन, दर्शन, रसन और वाण ये पांच इंद्रिये हैं । सुनना, छूना, देखना, सादलेना और मुंबना ये इन पांचोंके कर्म हैं। इन पांच कोसे ही इनका अनुमान कियाजाता । इन इन्द्रियों द्वारा ही बुदिकी प्रवृत्ति होती है ॥ २२ ॥
. कर्मेन्द्रिय।। हस्तपादगुदोपस्थांजद्रियमथापिवा । कर्मेन्द्रियाणिपञ्चैवपा- . दोगमनकर्मणि ॥२३॥ पायपस्थाविसहस्तीग्रहणधारणे । जिह्वावागिन्द्रियवाक्चसत्याज्योतिस्तमोऽनृता ॥२४॥ हाप, पांव, बुदा, गृह्य और जिहा ये पांच कर्मेन्द्रिय हैं । पाका चलना, अदाका मलत्याग, मुझका मूत्रत्याग, और हाथोंका ग्रहण करना कर्म है एवं जिताका उच्चारण करना कार्य है । वह उच्चारण करना दो प्रकारका है। १ सत्य, २ असत्य । सत्य ज्योतिःस्वरूप है .और असत्य तमःस्वरूप है ॥ २३ ॥ २४॥
- पञ्चमहाभूत । ., महाभूतानिखवायुरनिरापःक्षितिस्तथा । शब्दःस्पर्शश्वरूपञ्चरसोगन्धश्चतद्गुणाः ॥ २५ ॥ तेषामेकोगुणःपूर्वोगुणवृद्धिः परेपरे। पूर्व:पूर्वोगुणश्चैवक्रमशोगुणिषुस्मृतः ॥ २६ ॥ आकाश,गायु, अग्नि, जल और पृथ्वी ये पांच महाभूत हैं। शन्द, स्पर्श,, स और गंध ये इनके पांच मुण हैं । इनमें पहिलेमें, एक दूसरेमें दो,तीसरेमें दीन चौथेमें चार और पांचमें पांच ये गुण हैं। (इनको २२ के श्लोककी व्याख्या लिख चुके हैं)॥ २६ ॥ २६ ॥ .
पृथ्वी आदिके गुण । .. खरद्रवचलोष्णत्वंभूजलानिलतेजसाम् । आकाशस्याप्रतीषा
तोदृष्टंलिंगंयथाक्रमम् ॥ २७ ॥ लक्षणंसर्वमेवैतत्स्पर्शनेन्द्रियगोचरः। स्पर्शनेन्द्रियविज्ञेयास्पशाहिसविपर्ययः । १ ज्योतिषियोतिषम्मकतृत्वेन उमरंकप्रसारित्वात् ।
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