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चरकसंहिता-भा०टी०। इसप्रकार अग्निवेशके प्रश्नों को सुनकर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, प्रशान्तचित्त, भगवान्दः पुनर्वसुजी सर्वको यथाविधि वर्णन करनेलगे ॥ १३ ॥ . .
पुनर्वसुजाके पुरुषविषयक उत्तर । खादयश्चेतनाष्टाधातवःपुरुषःस्मृतः।
चेतनाधातुरप्येकःस्मृतःपुरुषसंज्ञकः ॥ १४ ॥ हे अग्निवेश ! यद्यपि केवल चेतनाधातुरूपही सर्वशास्त्रसंमत पुरुष है परन्तु. चिकित्सा साधनके लिए पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश और चेतना इनके मिलेहुए संबंधको पुरुष कहतेहैं ॥ १४ ॥ . पुनश्चधातुभेदेनचतुर्विशतिकः स्मृतः।
मनोदशेन्द्रियाण्याःप्रकृतिश्चाष्टधातुकी ॥ १५॥ फिर वह पुरुष पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच कर्मेन्द्रिय, पांचमहाभूत, प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पंचतन्मात्रा और एक मन । इनके संयोगसे चौबीसतत्वका कहा जाताहै ॥ १५ ॥
मनका वर्णन। लक्षणंमनसोज्ञानस्याभावोभावएववा । सतिगात्मेन्द्रिया
र्थानांसन्निकर्षणवर्त्तते ॥ १६ ॥ वैधृत्यान्मनसोज्ञानंसान्निध्या. . चच्चवर्त्तते । अणुत्वमथचैकत्वद्वौगुणौमनलःस्मृतौ ॥ १७ ॥.
ज्ञान होना और ज्ञानका न होना मनका लक्षण है अर्थात् एक कालमें एक वस्तुका ज्ञान होना और दूसरेका न होना, या यों कहिये कि दो ज्ञानोंका एकही कालमें उत्पन्न न होना मनका लक्षण है । आत्मा, इन्द्रिय और इन्द्रियोंका विषय इनका संयोग होनेपर भी मनके सन्निकर्षके विना किसी इन्द्रियके विषयका ज्ञान नहीं होता, अर्थात् आत्मा, इन्द्रिय और इन्द्रियार्थ रहतेहुए भी मनके सनिक
सही ज्ञानकी उत्पत्ति होतीहै । इन्द्रिय और अर्थके सन्निकर्ष होनेपर भी यदि मनका संयोग हो तव ज्ञान उत्पन्न होसकताहै । मनके संयोग न होनेसे ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता । इससे यह सिद्ध हुआ कि मन इन्द्रियोंसे भिन्न कोई अलग वस्तु ह जिसका इन्द्रियोंसे संयोग होनेपर ज्ञान उत्पन्न होताहै। एकत्व और. अणुत्व मनके ये दो गुण हैं अर्थात् मन असंक्लिष्ट और सूक्ष्म है ॥ १६ ॥ १७ ॥ . : १ अत्र चेतनाशब्देन समनस्क आत्मा गृह्यते । खादिग्रहणेन चन्द्रियाणि खादिमयान्यवरुद्धानि। १ पुरुषसंज्ञकः चेतनाधातुरूपोऽत्र कायचिकित्सायामनभिप्रेतः । पातु आध्यात्मिकचिकित्सायान्तुः अभिप्रेत एवेति रामप्रसादः।