________________
शारीरस्थानम्।
प्रथमोऽध्यायः। अथातःकतिषापुरुषीयव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानानेयः ।
अब हम कतिषापुरुषीय शारीरकी व्याख्या करते हैं इस प्रकार भगवान् आत्रे व्यजी कथन करने लगे।
अग्निवेशके पुरुषविषयक प्रश्न । कतिधापुरुषोधीमन् धातुभेदेनभिद्यते । पुरुषःकारणंकस्मा
प्रभवःपुरुषस्यकः॥ १॥ किमज्ञोऽज्ञःसनित्याकिकिमानत्यो निदर्शितः। प्रकृतिःकाविकाराककिलिङ्गंपुरुषस्यच ॥२॥
अग्निवेश बोले कि हे धीमन् ! धातुभेदसे पुरुष कितने प्रकारके होतेहैं । पुरुषको कारण किसलिये कहाजाता है । पुरुषके कारण कौन हैं । पुरुष यज्ञ है। अथवा ज्ञाता है । नित्य है अथवा अनित्य है । प्रकृति क्या है । विकार क्या हैं । पुरुषके क्या लक्षण हैं ॥ १॥२॥
निष्क्रियश्चस्वतन्त्रञ्चवशिनसर्वगविभुम् । वदन्त्यत्मानमा-: त्मज्ञाःक्षेत्रशंसाक्षिणतथा ॥३॥ निष्क्रियस्यक्रियातस्यभगवन् ! विद्यतेकथम् । स्वतन्त्रश्चेदनिष्टासुकथंयोनिषुजायते ॥. .
॥४॥ वशीयद्यसुखै कस्माद्भावैराकम्यतेवलात् । सर्वाःसर्व. गतत्वाचवेदना निवेत्तिसः॥५॥ ' आत्माके जाननेवाले पुरुष आत्माको क्रिया रहित, स्वतन्त्र,वशी, सर्वग,विभु.. क्षेत्रज्ञ और साक्षी कहते हैं सो हे भगवन् ! क्रिया रहित पुरुषमें क्रिया किसप्रकार .. है। विना इच्छासे अनिष्ट योनियोंको किसप्रकार धारण करता है । वशी पुरुष, इन्द्रियोंके सुखके वशमें बलात्कार क्यों फँसजाता है। संर्वज्ञ होनेसे सम्पूर्ण विकारोंको क्यों नहीं जानसकता ॥ ३॥ ४॥ ॥
नपश्यतिविभुःकस्माच्छैलकुडयतिरस्कृतम् । क्षेत्रज्ञाक्षेत्रसथ
वार्किपूर्वमितिसंशयः॥ ६ ॥ ज्ञेयक्षेत्रविनापूर्वक्षेत्रज्ञोहिनयु: . ज्यते । क्षेत्रत्रयदिपूर्वस्यारक्षेत्रज्ञःस्थादशाश्वतः ॥७॥