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विमानस्थान-अ०.८... (६५९), ' यहाँपर अध्यायके उपसंहारमें श्लोक हैं गुरु और शिष्यों के लक्षण,परीक्षा,कारण, ‘पढने और पढ़ानेकी विधि,संभाषण विधि, छि आलीस और बारह अर्थपद, इनके सिवाय तत्वसे दश प्रकारके अन्य कारणादि कथन और दश प्रकारके परीक्ष्य विषयोंमें प्रश्न,वमनादि विषयमें नौ प्रकारकी परीक्षाको रोगभिषगाजितीय अध्या'यमें कथन किया गया है ॥ १७६ ॥ १७७ ॥ १७८ ॥
बहुविधमिदमुक्तमर्थजातंबहुविधवाक्यविचित्रमर्थजातम् । ' वहुविधशुभशब्दसन्धियुक्तंबहुविधवादनिषूदनपरेषाम् ॥ १७९॥
अनेक प्रकारके अर्थोंका समूह और अनेक अर्थोंवाले विचित्र वाक्य तथा अर्थजात, सुन्दर शब्द, संधियुक्त अर्थ, अनेक प्रकारके वाद और प्रतिपक्षीके 'यक्षका खण्डनका वर्णन कियागयाहै ॥ १७९ ॥
इममितिबहुविधहेतुसंश्रयांविजज्ञिवान्परमतवादसूदनीम् । निलीयतेपरवचनावमर्दनेनशक्यतपेरवचनश्चमर्दितुम् ॥१८०.॥ . जो वैद्य इन बहु प्रकारके हेतुओंसे युक्त तथा प्रतिपक्षीके मत और वादके. -खण्डन करनेवाली इस मतिको जान लेता है । वह प्रतिपक्षीके संपूर्ण वचनोंको. 'मर्दन करनेको समर्थ होताह और प्रतिपक्षीके वचनोंसे अपने पक्षको कभी खण्डन होने नहीं देता ॥ १८० ॥
दोषादीनांतुभावानांसर्वेषामेवहेतुना। . .मानात्समस्तमानानिनिरुक्तानिविभागशः ॥ १८१॥ इत्यग्निवेशकते तन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृते विमानस्थानं समातम्। इस प्रकार इस विमानस्थान, वात, पित्त कफ आदिक दोषोंका और संपूर्ण आगेका हेतु विशेषसे तथा परिमाण विशेषसे विभागपूर्वक संपूर्ण मान (परिमा, .
का) कथन कियागयाहै ॥ १८१॥ . इति श्रीमहर्षिचरकप्रणीतायुर्वेदसंहितायां विमानस्थाने पं०रामप्रसादवैयोपाध्यायविरचित- - भाषाटीकायां रोगभिवग्विज्ञानीयविमानं नामाष्टमोऽध्यायः ॥ ८॥
संहित चरक विमान, जानहि विधिवत जे भिषक् । . . . सदसि पावहीं मान, विजय होहि वैद्यनविषे ॥
__ . इति विमानस्थानम् । . . . .
वडेतना।
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