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विमानस्थान-अ०८,
(६५७) : रात्मक लेहातैलमतलञ्च । तत्रतैलमेवकृत्वोपदिश्यतेसर्वत
स्तैलप्राधान्यात् । जङ्गमात्मकस्तुवसामज्जासपिरिति ॥ १७२॥ .
भव अनुवासन द्रव्योंका वर्णन करतेहैं । भनुवासन बेह द्रव्य ही होताहै। वह । स्नेह दो प्रकारका है । १ स्थावर । २ जंगम । स्थावर नेहोंसे तिलोंका तेल अन्य
सरसों आदि स्थावर द्रव्यों के तेल ग्रहण किये जाने । सम्पूर्ण स्थावर स्नेहोंमें विलोंका तेल प्रधान होनेसे सबको वैल ही कहाजाताहै । वसा,मज्जा और घृतकों जंगमनेह कहतेहैं ॥ १७२ ॥ .
तेषांतैलवसामज्जासर्पिषांतुयथापूर्वश्रेष्ठम् ।वातश्लेष्मविकारेषुअनुवासनीयेषुयथोत्तरंपित्तविकारेषुसर्वएववासर्वेषुयोगमायान्तिसंस्कारविधिविशेषादिति ॥ १७३॥ वात और कफके विकारों में अनुवासन करनेके लिये-वैल, वसा, मज्जा और वृत इन चतुर्विध स्नेहोंमें क्रमपूर्वक परकी अपेक्षा पूर्ववाला श्रेष्ठ माना जाता है । जैसे वात और कफके विकारोंमें घृतकी अपेक्षा मज्जा मज्जाकी अपेक्षा वसा और वसाकी अपेक्षा तैल श्रेष्ठ होता है एवम् पिचके विकारोंमें-तैलसे वसा,वसासे मज्जा मज्जासे घृत अनुवासन कर्म करनेकेलिये श्रेष्ठ माना जाताहै ।अथवा संस्कार विधि विशेषसे सब दोषों के विकारों में सवप्रकार स्नेह हितकारक होतेहैं। जैसे-चातनाशक द्रव्याद्वारा सिद्ध किये वातविकारमें तथा पित्तकारक द्रव्योंद्वारा सिद किये पिच विकारोंमें एवम् कफनाशक द्रव्योंद्वारा सिद्ध किये कफीवकारमें सब प्रकारसे हिव कर होते हैं ॥१७३॥
शिरोविरेचनद्रव्य । शिरोविरेचनद्रव्याणिपुनःअपामार्गपिप्पलीमरिचविडङ्गशिग्रुशिरीष-कुस्तुम्बुरु-बिल्वाजाज्यजमोदावार्ताकीपृथ्वीकेलाहरेणुफलानिच । सुमुखसुरसकुठेरकगण्डीरककालमालकपर्णासक्षवकफणिज्जकहरिद्राशृङ्गवेरमूलकलशुनतारीसर्षपपत्राणिच । अर्कालर्ककुष्ठनागदन्तीवचाभार्गीश्वेताज्योतिष्मतीग: वाक्षीगण्डीरावाकूपुष्पीवृश्चिकालीवयस्थातिविषामूलानिच । हरिद्राशृङ्गवेरमूलकलशुनकन्दाश्चलोभमदनसप्तपर्णनिम्बार्क