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चरकसंहिता-भा० टी०॥ पुष्पाणिचं । देवदार्वगुरुसरलशल्लकीजिङ्गिन्यसनहिंगुनिर्यासाश्चतेजोवराङ्गुदीशोभाञ्जनबृहतीकण्टकारिकात्वाति । शिरोविरेचनंसप्तविधंफलपत्रमूलकन्दपुष्पनि-सत्वगाश्रयः . भेदात् ॥ १७४ ॥
अब शिरोविरेचन द्रव्योंको कथन करते हैं । जैसे-अपामार्ग, पीपल,मिर्च,वायविडंग, सोहांजना, सिरस, धनियां, विल्वफल, कालाजीरा, अजमोद,वडी केटेरीके ‘फल, काश्मीरी जीरा, इलायची, रेणुका वीज और सुमुख, कुठेरक, सुरस,गण्डीर, कालमालक, पर्णाश तथा क्षेवक यह तुलसीकी जातियें, मरुआ, हल्दी, अदरख, मूली, लहसुन, अर्णी, सरसों इनके पत्र तथा आक, कूट, नागदंती, वच, भारंगी, अपराजिता, मालकांगुनी, इन्द्रायण,गण्डीर,अवाक्पुष्पी,वृश्चिका, वयस्था,अतीस, इन सबके मूल और हल्दी, अदरख, मूली इनके कंद । लोध, मैनफल, सतवन, नीम और आक इनके फूल एवम् देवदारु, अगर, सरल,शल्लकी,जाँगन पीवमाला
और हाँग इनका गोंद लेना चाहिये । इस प्रकार चव्य, दालचीनी, गोंदनी,सोहाजना, दोनों कटेरी इनकी छाल लेना चाहिये । इस प्रकार फल, पत्र, मूल, कैद 'फूल, गोंद और त्वचाके भेदसे शिरोविरेचन (नस्य ) सात प्रकार के होतेहैं१७४॥ .. लवणकटुतिक्तकषायाणिचइन्द्रियोपशयानितथापराण्यनुक्ता
न्यपिद्रव्याणियथायोगविहितानिशिराोवरेचनार्थमुपदिश्यन्ते इति ॥ १७५॥ लवण,कटु,तिक्त तथा कषाय रसवाले द्रव्य-और जो इन्द्रियों को उपशय अर्थात हितकारक हों उन द्रव्योंके प्रयोगको शिरोविरेचनके अर्थ कथन किया है। १७॥
___ अध्यायका संक्षिप्तवर्णन। .. लक्षणाचार्यशिष्याणांपरीक्षाकारणञ्चयत् । अध्येयाध्यापनविधिःसम्भाषाविधिरेवच ॥१७॥षभिर्म्युनानिपञ्चाशद्वादशाथपदानिच । पदानिदशचान्यानिकारणादीनितत्त्वतः ॥१७७॥सम्प्रश्नश्चपरीक्षादेवकोवमनादिषु । भिषग्जितीयेरोगाणांविमानेसम्प्रदार्शतः॥ १७॥