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'विमानस्थान-अ०८.
(६३९) करनेवाला होताहै वह बलके भेदसे उत्तम मध्यम और कनिष्ठ इन तीन प्रकारका होताहै इसीलिये मनुष्य उत्तमसत्त्व,मध्यमसत्त्व और अधमसत्त्व होतेहैं उनमें उत्तमसत्त्व पुरुष सत्वसारों में कथन कर चुकेहैं वह उत्तमसत्वसार मनुष्य अल्प शरीर होनेपर तथा निज और आगन्तुक महाकष्ट उपस्थित होनेपर भी व्यग्रचित्त नहीं होते क्योंकि इनमें सत्त्वगुणकी विशेषता होती है ॥ १३६ ॥
मध्यसत्त्वादिपुरुष । मध्यसत्त्वास्तुपरानात्मन्युपनिधायसंस्तम्भयन्त्यात्मनात्मानं परैर्वापिसंस्तभ्यन्तहीनसत्त्वास्तुनात्मनानचपरैःसत्त्वबलंशक्यन्ते उपस्तम्भयितुंमहाशरीराह्यपिते स्वल्पानामपिंवेदनानामसहादृश्यन्ते । सन्निहितभयशोकलोभमोहमाना रौद्रभैरवद्विष्टबीभत्सविकृतसंकथास्वपिचपशुपुरुषमांसशोणितानिचावेक्ष्य विषादवैवर्ण्यमूछोन्मादभ्रमप्रपतनानामन्यतमसाप्नु वन्त्यथवामरणमिति ॥ १३७ ॥ मध्यमसत्त्ववाले मनुष्य-अन्य मनुष्योंको कष्ट सहते देखकर स्वयं भी उनके सहारेसे अथवा दूसरोंकी सहायतासे या दूसरोंके धैर्य देने आदिपर किसी प्रकार कष्ट सहन कर सकतेहैं।हानसत्त्व पुरुष-न तो स्वयं कष्ट सहनकरसकते हैं और न दूसरकी सहायता देनेपर भी धैर्य धारण करते हैं । यह मनुष्य बड़े भारी शरीरवाले अल्पकष्टको सहन नहीं कर सकते । और सदैव इनके चित्तमें भय, शोक, लोभ, मोह स्थित रहते हैं । एवम् लंडाई अथवा डरावनी बात एवं भयानक बात और देषकारक बातोंको सुनकर तथा पशु, पुरुषादिकोंके मांस रक्त आदि देखकर ही विषाद, विवर्णवा, मूर्च्छता, उन्माद, गिरजाना अथवा अन्य किसी प्रकारका 'विकार होना या मृत्युतकको प्राप्त होना ऐसे उपद्रव होते हैं ।। १३७ ॥
भोजनशक्तिद्वारा परीक्षा । . आहारशक्तितश्चोत । आहारशक्तिरस्यवहरणशक्त्याजरणशतयाचपरीक्ष्यबलायुषीह्याहारायत्ते ॥ १३८॥ मनुष्यकी आहारशाक्ति से भी परीक्षा करनी चाहिये । भोजन करनेकी शक्तिसे • आहारके परिमाणसे, आहारकी परिपाक शक्तिसे आहार शक्तिकी परक्षिा की जानी है , मनुष्योंका बल और आयु आहारके ही आधीन है ।। १३८॥ .