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विमानस्थान-अ०८. .इन छ: ऋतुर्थीम साधारण लक्षणोंवाली तीन ऋतुओंमें वमनादि संशोधनक्रिया करनी चाहिये । साधारणसे विपरीत तीन ऋतुओंमें वमनादि नहीं करने चाहिया साधारण लक्षणांवाली ऋतुयें-अल्प शीतगुणवाली, अल्प गर्मोवाली और अल्पवर्षागुणवाली होनेसे मुखदायी होती हैं । इन प्रावृट् और शरद् तथा वसन्त ऋतुमें
औषधिये सब कार्य सिद्ध करनेवाली होती हैं तथा शरीर भी शोधनके योग्य होते हैं । इनसे विपरीत ऋतुओंमें अधिक:सर्दी, अधिक गर्मी और अधिक वर्षा होनेसे ये ऋतुयें दुःखदायक होती हैं । उस समय शरीरसंशोधन करनेके योग्य नहीं होते और औषधियें अपना यथोचित कार्य नहीं कर सकीं ॥ १४६ ॥
शीतमें संशोधननिषेध। तनहेमन्तेह्यतिमात्रशीतोपहंतंत्वाच्छरीरमसुखोपपन्नं भवति । .. अतिशीतवाताध्मातमतिदारुणीभूतमवनदोषम् । भेषजं पुनः संशोधनार्थमुष्णस्वभावमन्तेशीतोपहतत्वान्मन्दवीर्यत्वमापद्यते । तस्मात्तयोः संयोगेसंशोधनमयोगायोपपद्यते .. शरीरञ्चवातोपद्रवाय ॥ १४७ ॥ हेमन्त ऋतुम-शीतके अत्यन्त पडनेसे शरीरको दु:ख प्राप्त होता है। शीतल पवनके लगनेसे शरीर अत्यन्त रूक्ष होजाताहै रोम मार्गके संकुचित होनानेसे पसीना नहीं आता और दोष अत्यन्त वन्धा हुआ होता है।उस समय उष्ण स्वभाववाली संशोधन औषधी दी जानेपर शीतसे उपहत होकर मंदवीर्य होजाती है। इसलिये उस समय शरीर और औषधीका संयोग होनेसे संशोधनका अयोग होजाता और शरीरमें वायुके उपद्रव होनेलगजाते हैं ।। १४७ ॥
ग्रीष्ममें निषध । प्रीष्मेपुन शोष्णोपहतत्वाच्छरीरमसुखोपपन्नं भवति । उष्ण- . घातातपाध्मातमातिशिथिलमत्यन्तप्रविलीनदोषभेषजंपुनःसंशोधनार्थमुष्णस्वभावमेवात्युष्णानुगमनात्तीक्ष्णवरत्वमापद्य-. तोतस्मात्तयोःसंयोगेसंशोधनमतियोगायोपपद्यतेशरिमपि। पिपासोपद्रवाय ॥ १४८॥. प्रोममें अत्यन्त गौके ' पडनेस शरीर दुखित होजाताहै. ग. वायके जाने से शरीर शियि होजाता है। दोष सब विलीन होजाते। उस समय संगो धन औषयी. उष्णर्य होनेसे गर्मी की सहायता पाकर और भी अधिक