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(६६०) चरकसंहिता-भा० टी० । याण्यापिचमधुरस्कन्धेमधुराण्येवकृत्वोपदेक्ष्यन्तेतथेतराणिद- . व्याण्यपि। रसोंके संसर्ग और विकल्पसे अलग अलग वर्णन करें तो रस असंख्य होमा हैं क्योंकि मिलेहुए रसोंके अंशांश वल और विकल्प बहुत होतेहैं।इसलिये एकदेशी उदाहरणके लिये संपूर्ण द्रव्योंको छ: रसोंमें विभागकर रसके एक २ देशसे नाम और लक्षणोंको वर्णन करनेके लिये रसके छः आस्थापनस्कन्धोंको विभागपू ईक वर्णन करतेहैं । जो छ: प्रकारका आस्थापन कथन कियाहै । वैद्यलोग उसको यथोचित रीतिपर नहीं जान सकते क्योंकि वहुतसे द्रव्य ऐसे हैं जिनमें कई एक रसोंका संसर्ग पायाजाताहै। इसलिये मधुर और मधुरप्रायः तथा मधुरप्रभाव एवम् मधुरप्रभावप्रायः द्रव्य मधुर मान करके मधुर स्कंध कथन कियेजात । उसी प्रकार और द्रव्योंको भी जानना ॥
मधुरस्कन्ध। तद्यथा-जीवकर्षभको जीवन्तीवीरातामलकोकाकोलीक्षीरताको लीसुद्धपीमाषपर्णीशालपर्णीपचिपर्ण्यसनपमेदामहामेदाक. कटशृङ्गशृङ्गाटिकाछिन्नरुहाच्छनातिच्छनाश्रावणीमहाश्रावणी अलम्बुषासहदेवाविश्वदेवाशुक्लाक्षीरशुक्लावलातिबलाविदारी क्षीरविदारी क्षुद्रसहामहालहाऋष्यगन्धाश्वगन्धापयस्या वृश्चीरपुनर्नवाबृहतीकण्टकारिकैरण्डमोरटश्वदंष्ट्रासह शतावरीशतपुष्पामधूकपुष्पीयष्टिमधुमधूलिकाद्वीकाखजूरपरूप- : জানুৱাৰীলঙ্কাকঙ্কালঙ্কহীতাকুন্ডশক্ষার
र्यशीतपाक्योदनपाकीतालखर्जूरमस्तकेक्ष्विक्षुवालिकादर्भकुशकाशशालिगुन्द्रोत्कटकशरमूलराजक्षवकर्यप्रोक्ताद्वारदा भारद्वाजीवनत्रपुष्यभीरुपत्रीहंसपदीकाकनासाकलिंगाक्षी : क्षीरवल्लीकपोतवल्लीगोपवल्लीमधुवल्लीसोमवल्लीति । ए , षामेवंविधानामन्येषाञ्चमधुरवर्गपरिसंख्यातानामौषधद्रव्या•णांछेद्यानिखण्डशश्छेदयित्वाभेद्यानिचाणुशोभेदयित्वाप्रक्षात्यपानीयेनप्रक्षालितायांस्थाल्यांसमवाप्यपयसाअोदके, ..