________________
१६४८).
चरकसंहिता-मा० टी०। कियाजाताहै।पिप्पली,पीपलामूलं,चव्य,चित्रक,अदरख,ससौ,फाणित,दूध,क्षार और लवणयुक्त जल इनमेंसे जिस समय जो मिलसके और जिसप्रकार प्रयोग करनेसे हितकर होसके उस प्रकार इनका उपयोग करे।इनमें कोई चि बनाकर उपयोग करनेमें ‘काम आतेहैं । कोई चूर्ण,कोई अवलेह,कोई स्नेह,कोई काथ,कोई मांस रसमें, कोई यवागूमें,कोई यूपमें,कांवलिक,तथा क्षीरके संयोगसे काममें आतेहैं।कोई सूंघनेके पदामें,कोई मोदकमें,कोई अन्य उपयोगी द्रव्यके संयोगसे वमनसंबंधी कार्योंमें प्रयोग की जाती हैं। इनमेंसे जो औषधी जिस समय जिसप्रकार जिस वमन योग्य मनु. ज्यको देना हो उसको विधिपूर्वक प्रयोग करे । यह वमनोपयोगी द्रव्योंका कल्प -संग्रह कियागया है इसको विस्तार पूर्वक कल्पस्थानमें कथन करेंगे ।। १५७ ॥ .
विरेचनके द्रव्य । विरेचनद्रव्याणितुझ्यामात्रिवृचतुरंगुलतिल्वकमहावृक्षसप्तला. . शंखिनीदन्तीद्रवन्तीनांक्षीरमूलत्वपत्रपुष्पफलानियथायो. गमेतैश्चैवक्षीरमूलत्वपत्रफलपुष्पफलेविकृताविकृतैरंगन्धाश्वगन्धाजशङ्गीक्षारिणीनीलिनीक्लीतककषायैश्चप्रकीर्योदकी-मसूरविंदलाकम्पिल्लकविडङ्गगवाक्षीकषायैश्चपीलुप्रियालमृद्वीकाकाश्मर्यापरूषकबदरदाडिमामलकहरीतकीविभीतकवृश्चीरपुनर्नवाविदारिगन्धादिकषायैश्चशीधुसुरासौवीरकतुषोदकमेरेयमेदकमदिरामधुमधूलकधान्याम्लकुवलबदरखर्जूरकर्कन्धुभिश्चदधिदधिमण्डोदश्विद्भिश्चगोमहिष्यजावीनाचक्षीरमूत्रैर्यथोपला यथेष्टंवाप्युपसंस्कृत्यवार्तक्रियाचूर्णाः । बलेहस्नेहकषायमांसरसयूषकाम्बालिकयवागूक्षीरोपधेयान्मो. दकानन्यांश्चभक्ष्यविकारान्विविधांश्चयोगानभिविधाययथा- . हविरेचनाायदद्याद्विरेचनमितिकल्पसंग्रहोवरेचनद्रव्याणां कल्पस्त्वेषांविस्तरेणोपदेक्ष्यतेउत्तरकालम् ॥.१५८॥ . . अब विरेचनोपयोगी औषधयोंको कथन करते हैं। जैसे-श्यामा, निशोथ, अमलतास, लोध्र, थोहर, सातला, शखिनी, देती, द्रवंती, इनके दूध, जड, छाल, : पत्रु, पुष्प, फल, जैसे जिस स्थानमें उचित हों विरेचनके लिये उपयोग किये भावहैं । . तथा-अजवायन, असगंध, मेढासिंगी,दूधली, नीलनी, भुलहठी, इनके