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चरकसंहिता - भा० टी० |
रोणांचतुर्विधानांचाम्लिकानांद्वयोः कोलयोर्द्वयोश्चामशुष्कयो
ईयोश्चशुष्काम्लिकयोर्ग्राम्यारण्ययोश्वासवद्रव्याणिचसुरासौवीरतुषोदकमैरेय मेदक मदिरामधुशीधुशक्तिदधिदधिमण्डो
दश्विद्वान्याम्लादीन्येषामेवंविधानाञ्चान्येषाञ्चाम्लवर्गपरिसंख्यातानामौषधद्रव्याणांछेयानिखण्डशश्छेदयित्वाभेद्यानिचाणुशो भेदयित्वाद्रवैः स्थितान्यव सिच्यसाधायित्वोपसंस्कृत्ययथावत्तैलवसामधुमज्जालवणफाणितोपहितसुखोष्णंवस्तिवातविकारिणेविधिवद्दद्यादित्यम्लस्कन्धः ॥ १६९ ॥
व्यव अम्लस्कंधका कथन करते हैं जैसे- आम, आंबाडा, वडहर, करौंदा, अम्लवेत, अम्लवेद, दोनों प्रकार के बेर, अनार, विजौरा, कण्डीर, आमले, नन्दीतक, इमली, शीतक, जंभीरी नींबू, संतरा, कोशाम, धन्वन इनके फल और पत्र तथा असमंतक, चांगेरी, चार प्रकार के अमली, दो प्रकारके जामुन, तथा सूखी हुई अमली एवम् आमके और जंगलके सब आसव द्रव्य, सुरा, सौवीर, तुषोदक, मैरेय, मेदक, मदिरा, मधु, सीधू, सुक्तीमधू, दही, दहीका मंड, दहीका तोड, कांजी अथवा अन्य अम्लवगमें कहेहुए द्रव्योंके टुकडेकर कूटकर, साफजल से धो, किसी उाचत पतले पदार्थोंमें सिद्ध कर छान लेवे | फिर उसमें तेल, वसा, शहद, मज्जा और फाणित मिलाकर • बावाले मनुष्य के विधिपूर्वक आस्थापन वस्ति करे । इति अम्लस्कन्धः ॥ १६९॥ लवण स्कन्ध |
सैन्धवसो वर्च्चलकालविडपाक्यानूपकूप्यबाल कैलमूलक सामुद्ररोमकोद्भिदौषरपाटेयकपांशजानीतिएवंप्रकाराणिचान्यानि
' लवणवर्गपरिसंख्यातानि एतानिअम्लोपहितानिउष्णोदकोपहितानिवास्नेहवन्तिसुखोष्णं बस्तिवातविकारिणविधिज्ञोविधिवदद्यादितिलवणस्कन्धः ॥ १६२ ॥
अव लवणस्कन्धको कहते हैं। जैसे - सेंधानमक, संचरनमक, कालनमक, रिडनमक, तथा पाक्य, आनूप, कृप्य, बालक, एलमूलक, सामुद्र, रोमक, उद्भिद, -और, पाटेयक, पांसुज यह सब प्रकार के लवण तथा अन्य लवणं वर्गोक्त द्रव्य, पंजी अथवा गर्भजल में मिलाकर घृत, तैलादि चिकनाई के संयोग से सुखाष्ण
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