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विमानस्थान-अ०८ (६४१) स्थित होताहै (इस अवस्थाको युवावस्था तथा किसीके मवमवाल,वृदि,सम्पूर्णता
और हानि यह चार अवस्थाह)। तीसवर्षके उपरान्त साठवर्षकी अवस्थांतक मध्यअवस्था होतीहै । इस अवस्थामें बल, वीर्य, पुरुषार्थ, पराक्रम, ग्रहणशक्ति, धारणा, स्मरणशक्ति, वचनशक्ति और विज्ञान परिपूर्ण होतेहैं तथा सम्पूर्ण धातु
ओंके गुण भी पूर्णतायुक्त होते हैं। यह अवस्था पित्तप्रधान होतीहै । इसके उपरान्त मनुष्यकी धातु,इन्द्रिय,वल,पुरुषार्थ,पराक्रम,ग्रहणशक्ति, स्मरणशक्ति, वचनशक्ति
और विज्ञानशक्ति घटने लगजातीहै।सम्पूर्ण धातुयें अपने गुणोंसे भ्रश्यमान होजाती हैं इस अवस्थाको वृद्धावस्था कहते हैं। इसमें वायुको प्रधानता होती है । साठसे सौवर्षतक वृद्धावस्था कहीजातीहै ॥ १४१॥
वयाक्रमसे औषधप्रयोग । वर्षशतंखल्वायुषःप्रमाणमस्मिन्काले । सन्तिपुनरधिकोनवर्षशतजीविनोमनुष्याः। तेषांविकृतिवज्यै प्रकृत्यादिबलविशेषैरायुषोलक्षणतश्चप्रमाणमुपलभ्यवयसस्त्रित्वविभजेत । एवंप्र. कृत्यादीनांविकृतिवानांभावानां प्रवरमध्यावरावभागेनबलविशेषंविभजेत् । विकृतिबलत्रविध्येनतु दोषबलंत्रिविधमनुमीयते । ततोभैषज्यस्यतीक्ष्णमृदुमध्यविभागेनत्रित्वंविभ
ज्ययथादोभैषज्यमवचारयेदिति ॥ १४२॥ . . आयुका प्रमाण इस कालमें प्रायः सौवर्षका होताहै । किन्तु बहुतसे मनुष्य सत्वादि गुणविशेषसे और पुण्यशाली होनेसे सौवर्षसे अधिक भी जीतेहैं । परन्तु आयुका प्रमाण सौवर्षसे अधिक नहीं है ।मनुष्यके जीवनकी विकृतिको त्यागकरः प्रकृति आदिके बल विशेषसे और आयुके लक्षणोंसे आयुके प्रमाणको जानकर अवस्थाके तीन भेद करनेचाहिये । इसीप्रकार विकृतिको त्यागकर प्रकृत्यादिक मावोंका उत्तम,मध्यम और अधम विभाग करनसे तीन प्रकारका बलविशेष जानना चाहिये । विकृतिक तीन प्रकारके बलसे दोषोंके बलका तीनप्रकारका अनुमान कियाजाताहै । इसीप्रकार इन सबका विचार करनेके अनन्तर औषधीको तीक्ष्ण मध्यम और मृदु विभागकर बलवान् दोषमें तीक्ष्ण औषधी, मध्यम दोषमें मध्य
औषधी और थोडे दोषमें मृदु औषधीका उपयोग करना चाहिये ॥ १४२ ॥ ___आयुषःप्रमाणज्ञानहेतोःपुनरिन्द्रियेषुजातिसूत्रीयेचलक्षणान्यु
पदेश्यन्ते ॥ १४३ ॥