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विमानस्थान-अ०८.
(६४५) एतदपिभवत्यवस्थाविशेषेणतस्मादातुरावस्थास्वपिहिकाला- . कालसंज्ञा।तस्यपरीक्षामुहुर्मुहुरातुरस्यसर्वावस्थाविशेषावेक्षणं यथावत्भेषजप्रयोगार्थम्। नातिपतितकालमप्राप्तकालंकाभेपजमुपयुज्यमानंयौगिकंभवति कालोहिभपज्यप्रयोगपातिमभिनिर्वर्त्तयति ॥ १५२ ॥
इसप्रकार विचारपूर्वक कार्य करना अथवा न करना चाहिये इस प्रकारको परीक्षा रोगीके अवस्थाविशेषसे होती है । इस लिये रोगीकी अवस्था में भी समय
और असमयकी संज्ञा होती है उसकी परीक्षा वारम्वार रोगीको सम्पूर्ण अवस्थाविशेषकी अपेक्षा करती है । जैसे औषधप्रयोग के लिये भी अवस्थाविशेष विचार: नेकी आवश्यकता पड़ती है। जिस समय औषधका काल न हो अर्थात् औषध देनेका समय व्यतीत होचुकाहो और उस औषधीके लिये दूसरा समय कुसमय हो या औषध देनका समय न आया हो तो औषधका प्रयोग नहीं करना चाहिये । ठीकसमयपर औषधका प्रयोग करनाही उत्तम योग कहाजाता है ।काल ही औषधके योगकी परिपूर्णता करताहै ॥ १५२ ॥
प्रवृत्ति । प्रवृत्तिस्तुप्रतिकर्मसमारंभातस्यलक्षणभिषगातुरोषधपारचारकाणांक्रियासमायोगः ॥ १५३ ॥ प्रवृत्ति प्रत्येक कर्मके समारंभको कहतेहैं । वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक इनकी क्रियाका समायोग होना प्रवृत्तिका लक्षण है ॥ १५३ ॥
उपाय । उपायः पुनर्भिषगादीनांसौष्टवमभिसन्धानञ्चसम्यक् । तस्यलक्षणंभिषगादीनांयथोक्तगुणसंपद्देशकालप्रमाणसात्म्यक्रियादिभिश्चसिद्धिकारणैःसम्यगुपपादितस्यौषधस्यावचारणमिति । एवमेतदशपरीक्ष्यविशेषा:पृथक्पृथकपरीक्षितव्याभवन्ति । परीक्षायास्तुखलुप्रयोजनप्रतिपत्तिज्ञानम् ॥ १५४॥: वैद्यादिकोंका चिकित्साके उद्देश्यसे अनुकूल रीतिपर उपस्थित होना उपाय कहाजाताहै । वैद्य आदिक चिकित्साके चारों पादोंका यथोचित गुणसम्पन्न होकर देश, काल, प्रमाण, साल्य और क्रिया सिद्धि आदि कारणोंसे उत्तम रीतिपर