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चरकसंहिता-भा० टी०॥ .... मायुका प्रमाण जानने के लिये, इन्द्रिय स्थानके मावित्रीवाध्यायमें लक्षणोंकों -अमन करेंगे ॥१३॥
कालभेद । कालःपुनःसंवत्सरश्चातुरावस्थाच । वत्रसंवत्सरोद्विधात्रिधा. . बोटाद्वादशधाभवश्चातः प्रविभज्यते तत्चत्कार्यमाभस
मोक्ष्य ॥१४४॥ . .. काल, संवत्सर और आतुरकी अवस्थाको कहते हैं। इनमें संवत्सर काल अपन विभागसे दो प्रकारका,और सदी, गर्मी,वर्षा इन भेदोंसे तीन प्रकारका, ऋतुभेदसे छ प्रकारका,महीनों के विभागसे बारह भागोंमें विभक्त होताहै । इसके उपरान्त कार्यविभागसे और भी विभागोंमें विभक होता जाताहै ॥ १४४ ॥
षड्ऋतुविभाग। तत्रखलुतावत्षोढाप्रविभज्यकार्यमुपदेक्ष्यते । हेमन्तोग्रीष्मो वर्षाश्चेतिशीतोष्णवर्षलक्षणास्त्रयःऋतवोभवन्ति । तेषामन्तरेवितरेसाधारणलक्षणास्त्रयःऋतवःप्रावृटशरद्वसन्ताइति । प्रावृट्इतिप्रथमःप्रवृष्टेःकालस्तस्यानुबन्धोवर्षाएवमेतेसंशोध
नमधिकृत्यषड्विभज्यन्तेऋतवः ॥ १४५॥ __ . उस संवत्सर कालके.छः विभागकर कार्योंको कथन करतेहैं ।उन छः ऋतुओंमें
हेमन्स, ग्रीष्म और वर्षा यह तीन सर्दी, गर्मी और वर्षात इन तीन लक्षणोंवाली तीन ऋतुएँ होती हैं। इनके अन्तरमें प्रावृट्, शरद् और वसन्त यह तीन ऋतुएँ साधारण.लक्षणोंवाली होती है । प्रावृट् ऋतु-ग्रीष्म और वर्षाऋतके साधारण लक्षणवाली होती है। शरदऋतु-वर्षा और सर्दीके साधारण लक्षणवाली होती है। बसन्तऋतु-सदी और गम के लक्षणाली. होतीहै । संशोधन क्रिया करने के लिये 'हन छ। ऋतुओंके विधानका कथन कियाहै ॥ १४६ ॥ .
तत्रसाधारणलक्षणेष्वृतुषुवमनादीनांप्रवृत्तिर्विधीयतेनिवृषिरितरेषुः । साधारणलक्षणाहिमन्दशीतोष्णवर्णत्वात्सुख़तमा. . · श्वभवन्त्यविकल्पकाश्चशरीरोषधानामितरेपुनरत्यर्थशीतोष्ण
पर्षत्वादुःखतमाश्चभवंतिविकल्पाश्चशरीरोषधानाम् ॥ १४ ॥