Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 685
________________ विमानस्थान-अं०८ . (२) करसकता उसको दागना, शस्त्रकर्म करना और क्षारकर्म ( तेजाब आदिसे दग्ध करना) आदि तीक्षणकर्म और तीक्ष्ण औषध असह्य और तीक्ष्ण होनेसे. उसके प्राणोंको शीघ्र नष्ट करदेतीहै ॥ १०७॥ दुर्बलरोगीको औषध । एतच्चैवकारणमवेक्ष्यमाणाहीनबलमातुरमविषादकरै दुसुकुमारप्रायैरुत्तरोत्तरगुरुभिरविभ्रमैरनात्ययिकैश्चोपचरन्त्यौष- . धैःविशेषतश्चनारीस्ताहनवस्थितमृदुविकृतविकृवहृदया:प्रा. यःसुकुमारानार्योऽबलाःपरमसंस्तभ्याश्च ॥ १०८ ॥ इसलिये इन सब कारणोंकी अपेक्षा करताहुआ वैद्य हीनवल रोगीको कष्ट न देनेवाली मृदु तथा सुकुमार औषधों द्वारा साधन करे । यदि प्रबल औषधीकी भी आवश्यकता हो तो उसको क्रमपूर्वक जैसे वह सहन करसके वैसे उपयोग करे । जिससे वह कोई उपद्रव न करसके विशेषतासे स्त्रियोंकी नर्म औषधीद्वारा चिकि सा करनी चाहिये। क्योंकि उनका हृदय अस्थिर, नर्म, विवृत्त, विकल(डरपोक) होताहै । प्रायः सुकुमार स्त्रिये निर्बल होती हैं और परकृत सांत्वनाकी अपेक्षा रखती हैं ॥ १०८ ॥. ___अल्पवल औषधको व्यर्थता। तथाबलवतिबलवद्वयाधिपरिगतेस्वल्पबलमौषधमपरीक्षकप्रयुक्तमसाधकं भवतितस्मादातुरंपरीक्षेतप्रकृतितश्चविकृतितश्वसारतश्चसंहननतश्चप्रमाणतश्चसात्म्यतश्चसत्त्वतश्चाहारशक्तितश्चव्यायामशक्तितश्चवयस्तश्चेति ॥ १०९ ॥ इसीप्रकार बलवान् व्याधि एवम् बलवान् रोगीको विना परीक्षा किये अल्पचल औषधीका प्रयोग हानिकारक होताहै इसलिये रोगीकी प्रकृतिसे, विकृतिसे, सारसे, शरीरसे सब प्रकार परीक्षा करे एवम् साम्य,सत्त्व, आहारशक्ति, परिश्रमशक्ति और अवस्था इन सबकी परीक्षा करनी चाहिये ॥ १०९ ॥ बलप्रमाण ग्रहणके कारण। बलप्रमाणविशेषग्रहणहेतोः तत्रामीप्रकृत्यादयोभावाः तद्यथा-शुक्रशोणितप्रकृतिकालगर्भाशयप्रकृतिमातुराहारविहारप्रकृतिमहाभूतविकारप्रकृतिञ्चगर्भशरीरमपेक्षते । ए: ताहियेनयेनदोषेणाधिकतमनैकेनानेकतमेनवासमनुबध्यन्ते ।

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