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चरकसंहिता-भा० टी०।
सारद्वारा परीक्षा। सारतश्चेतिसाराण्यष्टौपुरुषाणांबलमानविशेषज्ञानार्थमुपदि. श्यन्ते। तद्या-त्वपक्तमांसमेदोऽस्थिमज्जाशक्रसत्त्वानि । तत्रास्निग्धश्लक्ष्णमृदुप्रसन्नसूक्ष्माल्पगम्भीरसुकुमारलोमासप्रभाचत्वक्साराणाम्। सासारतासुखसौभाग्यैश्वय्योपभोगबुद्धिविद्यारोग्यमहर्षणान्यायुष्यत्वञ्चाचष्टे ॥ ११६ ॥ अब सारसे परीक्षा कहते हैं । मनुष्योंका सार आठ प्रकारका होता है ।पुरुषके बलविशेषको जाननेके लिये आठप्रकारके सारोंकी परीक्षा करे । वह इसप्रकार हैं। जैसे त्वचा, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और सत्व यह आठ प्रकारके 'सार हैं । इनमें त्वचासारखाले पुरुषकी त्वचा चिकनी, श्लक्ष्ण, मृदु,प्रसन्न, सूक्ष्म, किंचित् गंभीर, सुकुमार, रोम तथा कांतियुक्त होती है । इस सारताके होनेसे मनुष्य सुखी, सौभाग्ययुक्त, ऐश्वर्य तथा भोग और बुद्धियुक्त होता है । एवम् • विद्वान्, निरोग, हर्षयुक्त और दीर्घायु होता है ॥ ११६ ॥
रक्तसार। कर्णाक्षि-मुखजिहानासौष्ठपाणिपादतल- नख--ललाटमेहनानिस्निग्धरक्तानिश्रीमन्तिभ्राजिष्णानरक्तसाराणामासा सारतासुखमुदग्रतांमेधांमनस्वित्वंसाकुमार्यमनतिवलमक्लेशसहिष्णुत्वञ्चाचष्टे ॥ ११७॥ रक्तमें सारता होनेस मनुष्योंके कान, नेत्र, मुख, जीभ, नाक, मोठ, हाथ, पांव, नख, मस्तक,लिंग ये सब चिकने और लालवर्णके होतेहैं तथा शोभा और कांति. युक्त होतेहैं । रक्तमें सारता होनेसे मनुष्य सुख, उन्नति और मेधायुक्त तथा मनस्वी सुकुमार, साधारण बलवाला और क्लेशके न सहनेवाला होताहै ।। ११७ ॥
मांससार। . शंख-ललाट-कृकाटिकाक्षिगण्डहनुग्रीवास्कन्धोरःकक्षवक्षः. पाणिपादसंघयःस्थिरगुरुशुभमांसोपचितामांससाराणाम् । · सासारताक्षमांधृतिमलौल्यवित्तविद्यासुखमाजवमारोग्यंबल.
मायुश्चदीर्घमाचष्टे ॥११८॥
मांसमें सारता होनेसे मनुष्योंके कनपटी, मस्तक, गर्दनका पिछलाभाग, नेत्र, 'कपोल, ठोडी, गर्दन, कंधे,छाती,वक्षस्थल,कारख, हाथ, पांव और सांधियें दृढ, तथा - १ सारशब्देन विशुद्धतरो घातुरुच्यते इति चक्रपाणिः ।