________________
विमानस्थान-अ०८.
(६३१) तथा उनके शरीरमें शीत, कम्प और जडता अधिक होतेहैं । वायुके परुष अर्थात् कठोर गुण होनेसे केश, श्मश्रु, गेम, नख, दांत,मुख,हाथ पांव,अंग यह सब कठोर होतेहैं । तथा वायुके विशद गुणसे अंगावयव फटेहुए होतेहैं । एवम् नित्य संघिय मटका करतीहैं । यह सब गुण होनेसे वातप्रधान मनुष्य अल्पायु अल्पसंतानवालें और अल्पसाधनवाले तथा निर्धन होतेहैं ॥ ११३ ॥
मिलीहुई तथा समप्रकृति । संसर्गात्सृष्टलक्षणाःसर्वगुणसमुदितास्तुसमधातवः इत्येवंप्रकृतितःपरीक्षेत ॥ ११४॥ दो दोषोंक संसर्गसे दो दोषोंके मिले जुले लक्षण होते हैं । सम्पूर्ण दोषोंके. समान होनेसे मनुष्य समधातु अर्थात् सम प्रकृतिवाला कहा जाताहै । इस नकार पुरुषकी प्रकृतिकी परीक्षा करनी चाहिये ॥ ११४ ॥
विकृतिपरीक्षा । विकृतितश्चेति। विकतिरुच्यते विकारः । तत्रविकारहेतुदोष- । दूष्यप्रकृतिदेशकालबलविशेषर्लिङ्गतश्चपरीक्षेत । नान्तरण हेत्वादीनांबलविशेषव्याधिबलविशेषोपलब्धिः । यस्यहि व्याधेर्दूष्यदोषप्रकृतिदेशकालसाम्यंभवतिमहच्चहेतुलिङ्गबलं सव्याधिर्बलवान्तद्विपर्यायाञ्चाल्पवल। मध्यवलस्तुदूष्यादी. नामन्यतमसामान्याद्धेतुलिङ्गमध्यबलत्वाञ्चउपलभ्यते॥११५॥
अव विकृतिकी परीक्षाको कथन करते हैं विकृति विकारको कहते हैं सो विदः. रको हेतु, दूष्य,दोष, प्रकृति,देश और काल तथा बल इनसे एवम् लक्षणसे पर करे। क्याोंके हेतु आदिकोंके वलविशेषको विनाजाने व्याधिक बलविशेषकी उपलब्धि नहीं होसकती। इनमें जिस व्याधिके दूष्य, दोष, प्रकृति, देश और काल समान हों अर्थात् एकही स्वभाववाले हों तथा हेतु आदिकोंके लक्षण बलवान् हों तो उस व्याधिको बलवान् व्याधि जानना । इससे विपरीत लक्षण होनसा
अल्पवल जानना । हेतु और दृष्य आदिकोंकी तुल्यता न होनेसे अन्य दोषोंकी · किंचित् साम्यता होतेहुए भी हेतुओंके लक्षण, मध्यवल होनेसे व्याधिको मध्यबल
जानना चाहिये ॥ ११५ ॥ . १ सर्वगुणसमुदिताः सर्वप्रकृतियुक्ताः प्रशस्तगुणयुक्ता इत्यर्थः ।