________________
(६३६) चरकसंहिता-मा० टी०।
ययेणाल्पबला प्रवरावरमध्यत्वात् संहननस्यमध्यबलाभवन्ति ॥ १३०॥ जिसके शरीर में हड्डिये सब बरावर और सुविभक्त और संधियों में भले प्रकार सुबन्ध हों और मांस तथा रुधिर शरीरमें सुडौल और उचित रीतिपर पूरित हो उस शरीरको सुसंगत कहते हैं । वह सुसंगत शरीरवाले पुरुष बलवान् होतेहैं । इससे विपरीत गुणवाले दुर्बल होते हैं । मध्यम लक्षणवाले मध्य वल होते हैं ॥ १३०॥
प्रमाणसे परीक्षा । प्रमाणतश्चेतिशरीरप्रमाणंपुनर्यथास्वेलांगुलिप्रमाणेनोपदेक्ष्यते । उत्सेधविस्तारायामैर्यथाक्रमम् ॥ १३१ ।। 'शरीरके प्रमाणके अनुसार भी परीक्षा करनी चाहिये । प्रत्येक मनुष्यका प्रमाण उसकी अंगुलियों द्वारा प्रमाण कियाजाताहै । अर्थात् प्रत्येक मनुष्यकी लंबाई, चौडाई और ऊंचाईको उसकी अंगुलियों द्वारा प्रमाणित जानना। उसको यथाक्रम वर्णन करते हैं ॥ १३१ ॥
तत्रपादौचत्वारिषट्चतुर्दशचाङ्गलानि, जंघेत्वष्टादशांगुले 'षोडशांगुलिपरिक्षेपे, जानुनीचतुरंगुलेषोडशांगुलिपरिक्षेपे, त्रिंशदंगुलपरिक्षेपावष्टादशांगुलावूरू, वृषणोषडंगुलदीर्घावष्टांगुलपरिणाही, शेफःषडंगुलदर्घिपञ्चांगुलपरिणाहं, द्वादशांगुलपरिणाहोभगः,षोडशांगुलविस्ताराकटी,दशांगुलंबास्त'शरः,दशांगुलविस्तारद्वादशांगुलमुदरं,दशांगुलविस्तीर्णेद्वादशांगुलायामेपार्श्वद्वादशांगुलविस्तारंस्तनान्तरंद्वयंगुलंस्तनपय॑न्तं, चतुर्विंशत्यंगुलविशालंद्वादशांगुलोत्सेधमुरःद्वयंगुलं हृदयम्, अष्टांगुलोस्कन्धौ, षडंगुलावंसौ, षोडशांगुलौवाहू, पञ्चदशांगुलौपाणी, हस्तोद्वादशांगुलौ, कक्षावष्टांगुली, त्रिक द्वादशांगुलोत्सेधम्,अष्टादशांगुलोत्सेधंपृष्ठं, चतुरंगुलोत्सेधा द्वाविंशत्यंगुलपरिणाहाशिरोधरा,द्वादशांगुलोत्सेधंचतुर्विशत्यंगुलपरिणाहमाननं,पञ्चांगुलमास्य,चिबुकोष्ठकर्णाक्षिमध्यना(१) प्रमाणतश्चेति प्रशस्त प्रमाणमगानाम्।
-
-