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विमानस्थान-अ०८
(६२५.. कफ़ जो हैं उनकी हीनता और अधिकताको परीक्षा द्वारा इनको परीक्षा होती है... एवम् विकारोंकी साध्यता, असाध्यता, मृदुता और दारुणताको भी लक्षण- विशेष षसे परीक्षा करनी चाहिये ॥ १० ॥
कार्यपरीक्षा। · कार्यधातुसाम्यं, तस्यलक्षणविकारोपशमः, परीक्षात्वस्यरुन- पशमनंस्वरवर्णयोगःशरीरोपचयःवलवृद्धिरभ्यवहाामिला
षोरुचिराहारकालेभ्यवहृतस्यचाहृतस्यचाहारस्यसम्यग्जरणं निद्रालाभोयथाकालंकारिकाणांस्वप्नानामदर्शनंसुखेनचनतिवोधनवातमूत्रपुरीषरेतसामुक्तिः।सर्वाकारैर्मनोबुद्धीन्द्रियाणाञ्चाव्यापत्तिरिति ॥ १०१॥ धातुओंकी साम्यावस्था रखना या होना अथवा साम्यावस्था उत्पन्न करना चिकित्साका कार्य है। तथा विकारोंकी शान्ति होना उसका लक्षण है।पीडा आदिका शान्त होना, स्वर,वर्णका पूर्ववतु उत्तम होना,शरीरका पुष्ट होना एवम् वलकी वृद्धि, आहारकी अभिलाषा, आहारकी रुचि,भोजनका समयपर पचजाना,समयपर क्षुधा लगना. सुखपूर्वक निद्रा आना,बुरे स्वमोंका न दीखना,सुखपूर्वक इच्छा नुसार जागृत होना समयपर मुखपूर्वक वात, मूत्र,पुरीष और वीर्यका मुक्त उचित
रीतिपर होना । संपूर्ण आकारोंसे मन, बुद्धि और इन्द्रियोंका स्वास्थ्य अर्थात् . विकार रहित होना यह सव विकार शान्तिके लक्षण होते हैं । १०१॥
कार्यफलपरीक्षा । कार्यफलंसुखावाप्तिस्तस्यलक्षणंसनोबुद्धीन्द्रियशरीरतुष्टिः१०२।। चिकित्सा कार्यका फल-सुख अर्थात् आरोग्यताकी प्राप्ति है ।मन, बुद्धि,इंद्रिया और शरीरको तुष्टि ही उसका लक्षण है ॥ १० ॥
अनुबन्धस्तुखल्बायुस्तस्यलक्षणंप्राणैःसंयोगः ॥ १०३ ॥ अनुबंध-अर्थात् आरोग्यताका फल दीर्घायु होना है। प्राणोंका शरीरके साथः संयोग रहना आयुका लक्षण है ॥ १०३ ॥
देशलक्षण। देशस्तुभूमिरातुरश्वतत्रभूमिपरीक्षाआतुरस्यपरिज्ञानहेतोर्वा
स्यादौषधपरिज्ञानहेतोर्वा । तत्रतावदियमातुरपरिज्ञानहेतोः। : . तद्यथा-अयंकस्मिन्भमिदेशेजातःसंवृद्धोव्याधितोवेतितस्मि