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- विमानस्थान - अ० ८.
- रुपक्रमैश्चप्रशाम्यन्ति । श्रोत्रादिसद्भावेशब्दादिग्रहणामात अदृष्टार्थः पुनरस्तिप्रेत्यभावोऽस्तिमोक्षइति सत्योनामयथार्थ: भूतः । सन्त्यायुर्वेदोपदेशाः । सन्त्युपायाः साध्यानाम्।सन्त्या-:.: रम्भफलानीति । सत्यविपर्य्ययाच्चानृतम् ॥ ३९ ॥
शब्द- इस स्थान में वर्णके उच्चारणको कहते हैं। वह शब्द दृष्टार्थक, अदृष्टार्थक, सत्य और अनृत इन भेदोंसे चार प्रकारका है । दृष्टार्थक उस शब्दको कहते हैं जो स्पष्ट और प्रत्यक्ष अर्थको बोध करे जैसे - प्रज्ञापराधादि तीन हेतुओंसे तीन दोष -कुपित होते हैं और लंघनादि छः प्रकार के उपक्रमोंसे शान्त होते हैं । कर्णादि द्वारा शब्दादिका ग्रहण होना अदृष्टार्थक शब्द कहा जाता है । जैसे- फिर जन्म होता है, ज्ञानसे मोक्ष होजाता है यह अदृष्टार्थक शब्द है । यथार्थ शब्दको सत्य शब्द कहते हैं जैसे- आयुर्वेद के उपदेश सत्य हैं साध्य रोग उपाय द्वारा शान्त हो सकते हैं, आरम्भका फल अवश्य होताहे । इन सबको सत्य शब्द कहते हैं । सत्यसे विपरीत अर्थात् मिथ्या शब्दको अनृत शब्द कहते हैं ।। ३९ ।।
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अथ प्रत्यक्षम् । प्रत्यक्षनामतद्यदात्मनापञ्चेन्द्रियैश्चस्वयमुपलभ्यते । तत्रात्मप्रत्यक्षाः सुखदुःखेच्छाद्वेषादयः । शब्दादयस्त्विन्द्रियप्रत्यक्षाः॥४०॥ जो विषय आत्मद्वारा अथवा पंचेन्द्रिय द्वारा निश्चयात्मकरूपसे जाना जाय उसको प्रत्यक्ष कहते हैं । सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, आदिक आत्माके प्रत्यक्ष हैं - और शब्दादिक इन्द्रियोंके प्रत्यक्ष हैं ॥ ४० ॥
अनुमानम् । अनुमानंनामतकयुक्त्यपेक्षोयथोक्तमग्निंजरणशक्त्याबलंव्या-यामशक्त्या श्रोत्रादीनिशब्दादिग्रहणेनेन्द्रियाणीत्येवमादिः ॥४१॥ युक्तियुक्त: तर्कको अनुमान कहते हैं। जैसे- पाचनशक्तिसे जठराग्निका अनुमान -करना, व्यायामकी शक्तिसे बलका अनुभव करना, शब्दादिक ग्रहणसे श्रोत्रादिक . इन्द्रियोंका अनुमान करना ॥ ४१ ॥
अथ औपम्यम् । औपम्यंनामयदन्येनान्यस्य सादृश्य मधिकृत्यं प्रकाशनंयथाद
१ आत्मनेति मनसा अनेन मानस प्रत्यक्षमुखाद्यमवरुध्यत इति चक्रपाणिः ।