________________
वयंमकार बुद्धि भी स्पर्शवा नहीं किया जाता वह स्पर्श न होनेसे बुद्धिाया जाय
विमानस्थान-अ०८. ताहै इसीसे यह सिद्ध होगया कि यह वैद्य है। इस स्थानमें संशयमें जो हेतु थ. उसको ही संशय छेद करनेमें हेतु बनाया गया । जो संशयमें हेतु होताहै वह संश' यके छेद करने हेतु नहीं होसकता इसलिये यह संशयसम अहेतु हुआ ॥६॥ वर्ण्यसमोनासाहेतुर्योहेतुर्वा विशिष्टःयथापरोब्रूयादस्पर्शत्वा- :
बुद्धिरनित्याशब्दवदितितत्रवर्ण्यःशब्दोबुद्धिरपिवातदुभयवाविशिष्टत्वाद्वयंसमोऽप्यहेतुः ॥६६॥
दो वस्तुओंको समानरूपसे वर्णन किया गया फिर उनमें अभेद दिखाया जाय उसको वर्ण्यसम अहेतु कहते हैं । जैसे कोई कहे कि स्पर्श न होनेसे बुद्धि अनित्य है क्योंकि शब्दका भी स्पर्श नहीं किया जाता वह स्पर्शवाला न होनेसे अनित्य हैं उसी प्रकार बुद्धि भी स्पर्शवाली न होनेसे अनित्य है । इस प्रकार कथन करना वर्ण्यसम अहेतु होता है ।। ६६ ॥
अतीतकालम् । , अतीतकालंनामयत्पूर्ववाच्यंतत्पश्चादुच्यतेतत्कालातीतत्वाद
ग्राह्यभवतिपरंवानिग्रहप्राप्तमनिगृह्यपरिगृह्यपक्षान्तरितंपश्चानिगृहीतेतत्तस्यातीतकालत्वान्निग्रहवचनसमर्थभवतीति ॥६॥ जिस विषयको पहिले कथन करना हो उसका पीछे कथन किया जाना अतीतकाल होता है । अतीतकाल होनेसे वह वचन अग्राह्य होजाता है । अथवा निग्रहस्थानको प्राप्त होकर दूसरे पक्षको मान लेना फिर अपने पहिले पक्षकी पुष्टिके लिये कथन करना कालातीत होताहै।इस लिये वह निग्रहमें ही गिनाजाताहै ॥ ६७॥
उपालम्भ । उपालम्भोनामहेतोदोषवचनंयथापूर्वमहेतवाहेत्वाभासाव्याख्याताः॥ ६८॥ हेतुमें दोष वर्णन करना उपालम्भ कहाताहै । यह अहेतुमें वर्णन कियाज.चु. काहै । इसको हेत्वाभास भी कहतेहैं ॥ १८॥
. परिहार। परिहारोनामतस्यैवदोषवचनस्यपरिहरणयथानित्यमात्मनिश.