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चरकसंहिता-भा० टी०॥ सत्प्रशमनायभवीततत्रसत्कासःसत्क्षयःसत्सामान्यात्कासः क्षयप्रशमनायभविष्यतीतिएतत्सामान्यच्छलम् ॥ ६३ ॥ जैसे किसी वैद्यने कहा कि व्याधीकी शान्तिके लिये औषध होती है अर्थात औषधसे रोगनाश होता है । इसपर प्रतिवादी मनुष्य कहे कि क्या सत्-सत्को शान्त करता है आप ऐसा कहते हैं ? यदि सत्को सत् शान्त करताहै अर्थात् सत् वस्तुद्वारा सत्की शान्ति होती है तो रोग भी सत् है और औषधी भी सत् है सो सत्रोगको सत् औषधी शान्त करती है ऐसा आप कहते हैं तो खांसी भी सत् हैं और क्षयरोग भी सत् है।बस सत् सामान्य खांसी सत् क्षयरोगको शान्त करनेवाली आपके मतसे सिद्ध होगई। इस प्रकारके कथनको सामान्यछल कहते है ॥ ६३ ॥
अहेतु। अहेतुर्नामप्रकरणसमः संशयसमोवर्ण्यसमइति । तत्रप्रकरणसमोनामाहेतुर्यथान्यः शरीरादात्मानित्वइतिपक्षेपरोयाच्छरीरादन्यआत्मातस्मान्नित्य शरीरमनित्यमतोविधर्मिणानेनचभवितव्यम्एषचाहेतुर्नहियएवपक्षःसएवहेतुः ॥६४ ॥
प्रकरणसम, संशयसम, वर्ण्यसम, इन भेदोंसे तीन प्रकारका होता है । प्रक. रणसम अहेतु-जैसे-किसीने कहा कि आत्मा शरीरसे भिन्न है और नित्य है उस. पर प्रतिवादी यह कहे कि-आत्मा शरीरसे भिन्न है इसलिये नित्य है और शरीर अनित्य है तो आत्मा विधर्मी होनेसे अर्थात् शरीरसे विरुद्धधर्मवाला होनेसे शरीर जो अनित्य होना ही चाहिये । इस प्रकारका कथन अहेतु कहाता है। क्योंकि जो पक्ष है वहीं हेतु नहीं होसकता ॥ ६४ ॥
संशयसमोनामाहेतुर्थएवसंशयहेतुःलएवसंशयच्छेदहेतुर्यथा । अयमायुर्वेदैकदेशमाहकिन्वयंचिकित्सकस्यान्नवेतिसंशयेपरो ब्रूयाद्यस्मादयमायुर्वेदैकदेशमाहतस्माच्चिकित्सकोऽयमिति। नचसंशयस्थेहेतुविशेषयत्येषचाहेतुःनहियएवसंशयहेतुःसएव संशयच्छेदहेतुः ॥६५॥ संशयके हेतुको संशयके छेदनका हेतु कर लेना संशयसम अहेतु कहाता है। जैसे-यह आयुर्वेदका एकदेश. कथन कर रहा है इसलिये यह वैद्य है कि नहीं ऐस संशय उत्पन्न होनेपर कोई कहे कि जिससे यह आयुर्वेदका एकदेश कथन कर.