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विमानस्थान-अ०८.
.६६१७). ज्ञानपरिषदिविज्ञानवत्याम, यद्वाअननुयोज्यस्यानुयोगोअनु..
योज्यस्यचाननुयोगः ॥ ७४॥ : सभामें बैठकर जो वाक्य तीनवार उच्चारण कियाजाय उसको भी वह न समझें और सभासद समझते हों इसप्रकार उस (प्रतिपक्षी)को सभामें बात नहीं करनेदेना अर्थात् पराजित करदेना निग्रहस्थान कहाताहै। अथवा अनुयोज्य वाक्योंक अनुयोग न करना और अननुयोज्योंका अनुयोग करना भी निग्रहस्थान (हार जाना ) कहाताहै ॥ ७४॥
प्रतिज्ञाहानिरभ्यनुज्ञाकालातीतवचनमहेतुःन्यूनमतिरिक्तंव्य
र्थमनर्थकंपुनरुक्तविरुद्ध हेत्वन्तरमर्थान्तरं निग्रहस्थानमितिवा: दमादापदानयथादेशमभिनिर्दिष्टानि । ७५॥
प्रतिज्ञाहानि, अभ्यनुज्ञा, कालातीत, वचन, अहेतु; न्यूनता, अधिकता, व्यर्य, अपार्थक, पुनरुक्त, विरुद्ध, हेवन्तर, अर्थान्तर, और निग्रहस्थान यह सव वादमाके पदोंको यथोद्देश निर्दिष्ट करचुके हैं अर्थात् निर्देश करचुके हैं ।। ७५॥
वादविषयकं उपदेश । वादस्तुखलुलिषजांवर्तमानोवत्तायुर्वेदएवनान्यत्र ॥७६ ॥ . बादानुवाद वैद्योंको आयुर्वेद शास्त्र में ही करना चाहिये अन्यशास्त्रोंमें नहीं७६॥ तंत्रहिवाक्यप्रतिवाक्यविस्तारावलाश्चोपपत्तयश्चलवाधिकरणेषुताःसर्वाःसम्यगवेक्ष्यावेक्ष्यसवाक्यंबूयाना कतिकमशास्त्रमपरीक्षितमसाधकमाकुलमज्ञापकंवासर्वञ्चहेतुमद्ध्याहेतुमन्तोडकलुषाःसर्वएक्वादविग्रहाश्चिकित्सितकारणभूताः। प्रशस्तबुद्धिवईकत्वात्सर्वारम्भसिदिह्यावहतिअनुपहताबुद्धिः७७ इस स्थानमें वाक्य प्रतिवाक्यका ही विस्तार कियागया है। इनके सिवाय शास्त्र में जो २ उपपत्तिये हैं उन सबको अच्छीतरह विचार कर वादानुवाद करना चाहिये । अर्थात् सव उपपत्तियोंको भले प्रकार.विचारकर ही सभामें बोलना चाहिये । तथा अप्रकृत, अशास्त्र, अपरीक्षित, अप्रमाण, आकुल और अज्ञापक शब्दों को कभी उच्चारण करना नहीं चाहिये । सब शब्द हेतुमान वोलना चाहिये हेतुयुक्त शब्दोंका बोलना, निदोष शब्दोंका उच्चारण, करना शास्त्रार्थ करना यह सब वैद्यकी बुद्धिके बढानेवाले होते है। बुद्धि निर्मल तथा अनुपहत एवं स्वच्छ होनेसे सम्पूर्ण कार्योंकी सिद्धि होती है ।। ७७ ॥