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विमानस्थान-अ० ६. ६.६०९) ....... ... ... अथ जिज्ञासा.। . ... .... 'जिज्ञासानामपरीक्षायथाभेषजपरीक्षोत्तरकालमुपदेक्ष्यते l
किसी विषयकी परीक्षा करना अर्थात् उसके जाननेका यल करना . जिज्ञासा कहाती है । जैसे-औषधकी परीक्षा आगे कथन करेंगे ॥ ४७ ॥
। अथ व्यवसायः । व्यवसायोनामनिश्चय यथावातिकएवायंव्याधीरदमेवास्यभेषजमिति ॥४८॥ निश्चयात्मक अर्थका कथन करना अथवा निश्चय कर लेना व्यवसाय, कहा जाता है। जैसे-यह व्याधि वायुसेही उत्पन्न हुई है और इसकी यही औषधि है ॥१८॥
अथार्थप्राप्तिः। अर्थप्राप्ति मयत्रैकेनार्थेनोक्तनापरस्थार्थस्यानुक्तस्यासद्धिः । यथानायंसंतर्पणसाध्योव्याधिरित्युक्तेभवत्यर्थप्रातिरतर्पणमा ध्योऽयमिति । नानेनदिवाभोक्तव्यमित्युक्तभवत्यर्थप्रातिनि- : शिभोक्तव्यमिति ॥ १९॥ कहे हुए अर्थसे विना कहेहुए दूसरे अर्थकी सिद्धि हाजाना अर्थप्राप्ति कहानाग है। जैसे यह व्याधि संतर्पणद्वारा साध्य नहीं हो सकती इससे यह अर्थ निकल आया कि अपतर्पणद्वारा साध्य हो सकती है । इस मनुष्यको दिनमें भोजन नहीं करना चाहिये इससे यह अर्थ निकल आया कि रात्रिको करना चाहिये इसको. अर्थप्राप्ति कहते हैं ॥ ४९ ॥
अथ सम्भवः । सम्भवोनामयोयतःसम्भवतिसतस्यसम्भवः । यथाषड्भात-- बोगर्भस्यव्याधरहितं हितमारोग्यस्योति ॥ ५० ॥ जो जिससे होसकताहो उसको संभव कहते हैं । जैसे षड्धातु गर्भशा संभव अर्थात् गर्भ होनेका कारण है। तात्पर्य यह हुआ कि छः धातुओंसे गर्भ हो सकता है।अहितसेवनसे व्याधिका होना संभव है और हितपदार्थक सेवनसे आरोग्य रहना, संभव है ॥५०॥
. .. अथानुयोज्यम्। . : . . : .: .. अनुयोज्यनामयद्वाक्यवाक्यदोषयुक्तंतदनुयोज्यमुच्यते । सा