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घरकसंहिता-भा० टी०॥ मान्योदाहृतेष्वर्थेषुवाविशेषग्रहणार्थतद्वाक्यमनुयोज्यमायथा संशोधनसाध्योऽयंव्याधिरित्युक्तकिंवमनासाध्याकिविरेचनसा
ध्यइत्यनुयुज्यते ॥५१॥ · जो वाक्य दोषयुक्त हो उसको अनुयोज्य कहतेहैं । जहां सामान्यतासे थोडासा कहना उचित हो उस स्थानमें बडीलम्वी कथाको छेडदेना अनुयोज्य कहाताहै। जैसे किसीको कहागया कि यह रोगी संशोधन द्वारा साध्य होसकताहै उसमें यह यूछना क्या इसको वमन और विरेचन भी कराना होगा इत्यादि वाक्योंको पूछना अनुयोज्य कहाताहै ॥५१॥
__ अथाननुयोज्यम्। अननुयोज्यनामातोविपर्ययेणयथायमसाध्यः ॥ ५२ ॥ अनुयोज्यसे विपरीतको अननुयोज्य कहतेहैं ।जैसे यह मनुष्य असाध्य है ॥५२॥
अथाऽनुयोगः। अनुयोगोनामयत्तद्विद्यानांतद्विद्यैरेवसाद्धतन्त्रेतन्त्रैकदेशेवा . प्रश्न प्रश्नैकदेशोवाज्ञानविज्ञानवचनपरीक्षार्थमादिश्यते । अथवानित्यःपुरुषइतिप्रतिज्ञातेयत्परःकोहेतुरित्याहसोऽनुयोगः॥५३॥ . वैद्य वैद्यके साथ परस्पर वैद्यकशास्त्रमें अथवा वैद्यकशास्त्र के एक अंशमें प्रश्न करे अथवा प्रश्तके एकदेशको करता हुआ ज्ञान, विज्ञान,वचन इनकी परीक्षाके लिये बराबरीवालेसे जो प्रवृत्ति करे उसको अनुयोग कहते हैं । अथवा एकने कहा कि पुरुष नित्य है उसमें यह कहना कि पुरुषके नित्य होनेमें हेतु क्या है अनुयोग कहाता है ॥ ५३॥
अथ प्रत्यनुयोगः। : प्रत्यनुयोगोनामानुयोगस्यानुयोगः। यथाऽनुयोगस्यपुनः कोहे
तुरिति ॥ ५४॥
अनुयोगमें अनुयोग करनेको प्रत्यनुयोग कहते हैं जैसे आप ऐसा प्रश्न हमारे ऊपर कैसे करसकते हैं यह कहना प्रत्यनुयोग कहाजावा. है ॥ ५४॥