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चरकसंहिता-भा० ट। ण्डेनदण्डकस्यधनुषाधनुष्टम्भस्यइष्वसिनाआरोग्यदस्योत॥४२॥ जो विषय दूसरेसे दूसरेकी सादृश्यताको प्रकाश करता है उपमान कहा जाता है। जैसे-दण्डक रोग-दण्डेके समान होता है । धनुष्टंभ रोगमें मनुष्य धनुषके आकार टेढ़ा होजाता है। जो औषधी रोगको शीघ्र नष्ट कर डाले उसको तीरकी उपमा दी जाती है । इसको उपमान कहते हैं ॥ ४२ ॥
अथ ऐतिह्यम्। ऐतिानामआतोपदेशोवेदादिः॥४३॥ ऐतिह्य-आप्तोपदेशको एतिह्य कहते हैं जैसे वेद और आर्ष ग्रंथ आप्त प्रमाणा.
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अथ संशयः। .. संशयोनामसन्दिग्धेष्वर्थेष्वनिश्चयः।
यथाकिमकालमृत्युरस्तिनास्तीति ॥४४॥ . संदिग्ध अर्थों के अनिश्चयको संशय कहते हैं। जैसे-अकालमृत्यु है या नहीं। इस संशयात्मक अनिश्चित ज्ञानको संशय कहते हैं ॥ ४४ ॥
अथ प्रयोजनम् । । 'प्रयोजनंनामयदर्थमारभ्यन्तआरम्भाः । यथायद्यकालमृत्युर. स्तिततोऽहमात्मानमायुप्यरुपचरिष्यामिअनायुष्याणिचपरिह- रिष्यामिकथंमामकालमृत्युःप्रसहेतेति ॥४५॥
जिस अर्थके लिये आरम्भ कियाजाताहै उस अर्थको प्रयोजन कहते हैं। जैसेयाद अकालमृत्यु है तो मैं अपनेको आयुवर्द्धक उपचारों द्वारा रक्षित रक्तूंगा और आयुनाशक पदार्थोंका त्याग करूंगा। क्योंकि मैं अकालमृत्युको सहन करना नहीं चाहता । इस स्थानमें दीर्घायु होनेके लिये प्रयत्न करना “प्रयोजन" कहाताहै ॥ ४५ ॥
अथ सव्यभिचारम् । सव्यभिचारनामयद्वयभिचरणयथाभवेदिदमौषधंतस्मिन्व्याधोयौगिकमथवानेति ॥४६॥ किसी विषयका एक जगहसे दूसरी जगह भी व्यापक होजाना सव्यभिचार कहाता है । जैसे-यह औषधी इस रोगमें हितकारक है और नहीं भी है ॥