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विमानस्थान - अ० ८. .
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- जिस कथनमें मूर्ख और विद्वानोंकी बुद्धिकी साम्यता हो अर्थात् जिसका मूख और पंडित दोनों एकरूपसे मानजांय इस प्रकारके कथनको दृष्टान्त कहते हैं जैसेअनि उष्ण है, जल पतला है, पृथ्वी स्थिर होती है, आदित्य प्रकाशमान है अथवा यों कहिये जैसे आदित्य प्रकाशमान है वैसे ही सांख्यके वचन भी प्रकाशको करनेवाले हैं । इसको दृष्टान्त कहते हैं ॥ ३३ ॥
अथ सिद्धान्तः ।
सिद्धान्तो नामयः परीक्ष कैर्बहुविध परीक्ष्य हेतुभिः साधयित्वा स्थाप्यतेनिर्णयःससिद्धान्तः । सचोक्तश्चतुर्विधः । सर्वतन्त्रसिद्धान्तः। प्रतितन्त्रसिद्धान्तोऽधिकरणसिद्धान्तोऽभ्युपगमसिद्धान्त इति ॥ ३४ ॥
जो परीक्षकोंने अनेक प्रकारसे परीक्षा कर हेतुओंद्वारा साधन करके स्थापन किया हो अर्थात् निर्णय किया हो उसको सिद्धान्त कहते हैं। वह सिद्धान्त - सर्वंतंत्र सिद्धान्त, प्रतितंत्र सिद्धान्त, अधिकरण सिद्धान्त और अभ्युपगमसिद्धान्त इन भेदोंसे चार प्रकारका कहा है ॥ ३४ ॥
सर्वतन्त्रसिद्धान्तः ।
तत्र सर्वतन्त्रसिद्धान्तानामतस्मिंस्तस्मिन् सर्वस्मिंस्तन्त्रेतत्प्रसिद्धंसन्तिनिदानानिसंतिव्याधयः सन्तिसिद्धयुपायाः साध्यानामिति ॥ ३५ ॥
उनमें जो सिद्धान्त संपूर्ण तंत्रों (ग्रंथों) में एक समान हो और उसको सब मानते हों उसको सर्वत्र सिद्धान्त कहते हैं । जैसे - व्याधिका कारण और व्याधि तथा साध्यव्याधिक चिकित्सा इसको सब तन्त्रों में कहा है और सब मानते हैं । इसलिये यह सर्वतंत्र सिद्धान्त है ॥ ३५ ॥
प्रतितन्त्रसिद्धान्तः । प्रतितन्त्रसिद्धान्तानामतस्मिंस्तस्मिंस्तन्त्रेतत्तत्प्रसिद्धयथान्यत्राष्टौरसाः षडन्यत्र । पञ्चेन्द्रियाणियथान्यत्र षडिन्द्रियाणि । वातादिक्कताःसर्वविकारायथान्यत्र वातादिकता भूतकृताश्च प्रसिद्धाः ॥ ३६ ॥
प्रतितंत्र सिद्धान्त उसको कहते हैं. जो एक. २. तंत्रमें अपने अपने रूपसे प्रसिद्ध हो और उसको वही वही तंत्रकार मानते हों। जैसे- किसीके मतमें रस आठ प्रकारक