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विमानस्थान-अ०८
(६०३ अथ स्थापना। स्थापनानामतस्याएवप्रतिज्ञाया हेतुदृष्टान्तोपनयनिगमैःस्था- . पना, पूर्वहिप्रतिज्ञा, पश्चात्स्थापनाकिंह्यप्रतिज्ञातस्थापयिष्यतियथानित्यःपुरुषइतिप्रतिज्ञाहेतुरकृतकत्वादिति । दृष्टान्तोयथाकाशंतच्चानित्यम् । उपनयोयथाचाकृतकमाकाशंतथापुरुषः। निगमनंतस्मान्नित्य इति ॥२८॥ पाहले कीहुई प्रतिज्ञाको-हेतु, दृष्टांत, उपमा और निगमन द्वारा सिद्ध करना स्थापना कहाता है । पहिले प्रतिज्ञा कहकर पीछे उसको स्थापना किया जाता है क्योंकि प्रतिज्ञा किये विना स्थापना होही नहीं सकती । जैसे पुरुष नित्य है यह प्रतिज्ञाकी अकृत होनेसे अर्थात् किसीका बनायाहुआ न होनेसे, यह हेतु हुआ । जैसे-आकाश अकृत होनेसे अर्थात् किसीका बनाया हुआ न होनेसे नित्य है, यह दृष्टान्त हुआ। जैसे-आकाश किसीका बनाया न होनेसे नित्य है उसी प्रकार पुरुष भी किसीका बनाया न होनेसे नित्य है यह उपनय हुवा ॥ इसालये पुरुष नित्यहै यह निगमन हुआ ॥ २८ ॥
अथ प्रतिष्ठापना । प्रतिष्ठापना नाम या परप्रतिज्ञायाःप्रतिविपरीतार्थस्थापना। यथाअनित्यपुरुषइतिप्रतिज्ञाहेतुन्द्रियकत्वात् । दृष्टान्तोयथा घटऐन्द्रियक संचानित्यः। उपनयोयथाघटस्तथापुरुषःतस्मादनित्यइति ॥ २९॥ जो पर प्रतिज्ञासे विपरीत अर्थवाली प्रतिज्ञाका स्थापन करना है उसको प्रतिष्ठा पना कहते हैं । जैसे-पुरुष नित्य नहीं अनित्य है यह प्रतिज्ञा हुई । इसके अनित्य होनेमें हेतु यह है कि यह इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष होता है । दृष्टान्त यह है कि जैसेइन्द्रियों द्वारा घटका ज्ञान होताहै सो घट अनित्य है। जैसे घट अनित्य है वैसेही पुरुष भी आनित्य है यह उपमान हुआ । इसालये पुरुष अनित्य है यह निगमन हुआ ॥ २९ ॥
. अथ हेतुः। हेतुर्नामोपलब्धिकारणंतत्प्रत्यक्षमनुमानमैतिह्यमौपम्यमित्येभिहेतुभिर्यदुपलभ्यतेतत्तत्त्वम् ॥ ३०॥ . . १ हेतुअन्दनात्र लिंगप्रवाहकाणि प्रत्यक्षादिप्रमाणान्येव। . ...