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विमानस्थान-अ०० (५८९) सुन्दर जीभ हो, दंतपंक्ति और ओष्ठ उत्तम हों तथा धारण शक्तिवाला हो, अहंकार रहित हो मेधायुक्त हो, तर्क शक्ति और स्मरण शक्तिवाला हो, उदार स्वभा. ववाला हो और उनके कुलमें परम्परासे विद्या पढने, पढानेकी प्रथा चली आती हो अथवा उस विद्याको पढना चाहता हो । उस विद्यासे अपने लाभकी इच्छा करता हो, जो विद्याके तत्वको जाननेमें चित्त लगाये हुए हो, जिसके शरीरके. सम्पूर्ण अङ्ग उत्तम हो, सर्वेन्द्रिय सम्पन्न हो, विनीत हो, अकड रहित हो,दुर्व्यसन रहित हो, सुशील हो, पवित्र हो, अनुरागी हो, चतुर हो, हरएक कार्य बुद्धिमत्तासे करनेवाला हो, पढनेमें वित्त लगाये हुए हो, अर्थके जानने और वैद्यकर्म सखिनेमें तथा देखनेमें चित्त लगाये हुए हो, गुरुकी आज्ञा पालन करनेवाला हो और गुरुमें प्रेमभाव रखनेवाला हो। इस प्रकारके गुणोंसे सम्पन्न शिष्य पढाने योग्य होता है । इन सम्पूर्ण गुणोंयुक्त शिष्य बहुत कालतक पढनेकी इच्छासे आवे तो ऐसे शिष्यको गुरु विधिवत् शास्त्रका उपदेश कर देवे ॥५॥
उपदेश । उदगयने शुक्लपक्षेप्रशस्तेऽहनिपुष्यहस्तश्रवणाश्वयुजामन्यतमेननक्षत्रेणयोगमुपगतेभगवतिशशिनिकल्याणेमुहूर्तेस्त्रातःकृ. तोपवासामुण्ड कषायवस्त्रसंवीतः समिधोऽग्निमाज्यमुपलेपन- . मुदककुम्भांश्चसुगन्धिहस्तमाल्यदामहिरण्यान्हेमरजतमाणमुक्ताविद्रुमक्षौमपरिधींश्चकुशलाजसर्षपाक्षतांश्चशुक्लांश्चसुमनसोग्रथिताग्रथितांश्चमेध्यांश्चभक्ष्यान्गन्धाश्चपिष्टापिष्टानादायोपतिष्ठस्वेति । सतथाकुर्यात् ॥६॥ जब शिष्यको अध्ययन कराना हो तो आचार्य कहे कि तुम उत्तरायणमें, शक्ल । पक्षमें और शुभदिनमें पुष्य,हस्त, श्रवण, अश्विनी इन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्रयुक्तचन्द्रमा होनेपर सुमुहूर्त और शुभलग्नमें स्नान और उपवास करके मुण्डन करा, कषाय वस्त्रोंको धारणकर यज्ञकी समिधा, अग्नि, घृत, उपलेपन द्रव्य, जल, घट, सुगन्धित द्रव्य, खुक, माला, नेती, मृगछाला, सुवर्ण, रजत, मणि, मुक्ता, मूंगा, रेशमी धोती, कुशा, लाजा, सरसों,अक्षत, श्वेतपुष्प, और पुष्पोंकी माला, पवित्र . भक्ष्य पदार्थ, केशर चन्दनादि उत्तम गन्ध पिसे हुए और विना पिसे हुए लेकर हमारे पास आवो । शिष्य उसीप्रकार करे ॥६॥