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विमानस्थान-अ. (६९९५) भिषभिषजासहसम्भाषेत । तद्विद्यसम्भाषाहिज्ञानाभियोग
सहर्षकरीभवति । वैशारद्यमपिचाभिनिवर्त्तयतिवचनशक्तिमपिचाधत्तेयशश्चाभिदीपयति। पूर्वश्रुतेचसन्देहवतःपुनःश्रवणा-. 'छुतसंशयमपकर्षति । श्रुतेचासन्देहवतोभूयोऽध्यवसायमभिनिवर्तयति । अश्रुतमपिचकश्चिदर्थश्रोत्रविषयमापादयति । यच्चाचार्य:शिष्यायशुश्रूषवेप्रसंन्नक्रमेणोपदिशतिगुह्यांभिमतमर्थजातम्, तत्परस्परेणसहजल्पपिण्डेनविजिगीषुराहसंह
र्षात्तस्मात्तद्विद्यसम्भाषामभिप्रशंसन्तिंकुशलाः॥ १३ ॥ . इसके उपरान्त अध्ययन और अध्यापन विधिके समान अव संभाषण विधिका कथन करते हैं । वैद्यको वैद्यसे संभाषण करना चाहिये क्योंकि वैद्यसे वैद्य संभाषण करता हुआ आयुर्वेदके संबंध तर्क वितर्ककी सामर्थ्यवाला होजाता है और उसकी ज्ञानशक्ति तथा कथनशक्ति बढजाती है एवम् बोलनेकी चतुराई उत्पन्न होजाताहै यश बढता है, पहिले सुने हुए विषय जिनमें संदेह होगया हो वह परस्पर शास्त्रार्थ द्वारा मुननेसे उनका संशय दूर होजाताहै और संदेह रहित वाक्य भी बोले और •सुने जानेसे निश्चयात्मक और याद होजाते हैं। जो विषय कभी सुनने नहीं भी
आये वह भी शास्त्रार्थमें श्रवणगोचर होजाते हैं । जिन गुह्य विषयोंको आचार्य शिष्यसे प्रसन्न होकर भी क्रमपूर्वक कथन करते हुए इस विचारमें रहता है कि किसी समय योग्य शिष्यको बतलावेंगे या बडे प्रेमी शिष्यको और अत्यन्त शुश्रूषा कर. नेवालेको क्रमसे बतलाताहै वह गुह्य विषय भी शास्त्रार्थके समय एक दूसरेको जीत. नेकी इच्छा करता हुआ और अपने पक्षको पुष्ट करने के लिये तथा अपने पांडि. त्यको दिखाता हुआ झट आवेशमें आ प्रगट करदेता है। इसलिये तद्विद्य संभाषा अर्थात् वैद्यको वैद्यसे वैद्यक विषयमें संभाषण करनेकी बुद्धिमान् प्रशंसा करते हैं ॥१३॥ . . . द्विविधातुखलुतद्विद्यसम्भाषाभवति सन्धायसम्भाषा विगृह्य- . सम्भाषाच । तत्रज्ञानविज्ञानवचनप्रतिवचनशक्तिसम्पन्नेनाकोपनेनअनुपस्कृतविद्यनानसूयकेनअनुनयकोविदेनक्लेश-.
क्षमेणं प्रियसम्भाषणेनचसहसवायसम्भाषाविधीयते। तथावि. ___.. धेनसहकथयन्विन्धःकथयत् पृच्छेदपिचविश्रब्धःच्छतेचा.
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